श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
देह अध्यास
अनात्म में जो आत्म देखता, जन्म मरण क्लेशों को पाता
असत् देह को सत् मानकर, रक्षण, पोषण आदि करता
तमोगुण अज्ञान का कारण, कुछ का कुछ है दिखलाता
यही है बंधन घोर सदा जो, रस्सी को है सर्प बताता
नित्य, अखंड आत्मतत्व को, तमोमय अज्ञान ढक लेता
जैसे परम सूर्य को नभ में, राहू है आच्छादित करता
निर्मल अति तेज युक्त जो, आत्म तत्व जब ढक जाता
देह को ही मैं मानकर, काम, क्रोध आदि से बंधता
भ्रमित हुआ सा तब यह जीव, भव सागर में गोते खाता
महामोह ग्राह के द्वारा भी, निज बुद्धि से भी ठगा जाता
सूर्य तेज से उत्पन्न होती, बदली ज्यों सूरज को ढकती
प्रकट आत्म से अहंकार भी, आत्मा को आवृत करता
नभ पर जब घनघोर घटा हो, शीत पवन तन को चुभती है
बुद्धि पर जब तमस घना हो, नाना यह दुःख उपजाती है
आवरण व विक्षेप ही जग में, बंधन जीव के हैं भारी
इनसे ही मोहित हो मानें, देह को आत्मा सब नर-नारी
यह संसार इक वृक्ष है यदि, अज्ञान ही बीज है इसका
देह अध्यास है अंकुर सम, पत्र राग, कर्म जल जिसका
विषय पुष्प हैं इसके मोहक, शाखा प्राण, उपशाख इन्द्रियाँ
नाना कर्मों से जो उपजा, दुःख वह फल, जीव भोक्ता
है अनादि और अनंत, बंधन जो अज्ञान से उपजा
उत्पन्न करता यही प्रवाह, जन्म, मरण, जरा, मृत्यु का
निर्मल अति तेज युक्त जो, आत्म तत्व जब ढक जाता
ReplyDeleteदेह को ही मैं मानकर, काम, क्रोध आदि से बंधता
देह को ही मैं मान लेने का अज्ञान ही मानव के पतन का कारण है!
बहुत सुन्दर! आभार!
ReplyDeleteबहुत सटीक बातें ..
ReplyDeleteसपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
यह संसार इक वृक्ष है यदि, अज्ञान ही बीज है इसका
ReplyDeleteदेह अध्यास है अंकुर सम, पत्र राग, कर्म जल जिसका
आभार इस अद्भुत श्रृंखला के लिए।
बहुत सटीक और ज्ञानप्रद...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
यथार्थपरक उत्कृष्ट पोस्ट
ReplyDeleteआपको दीपावली एवं नववर्ष की सपरिवार ढेरों शुभकामनाएं !