Wednesday, October 5, 2011

आश्वासन


श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि


आश्वासन

संसार अनल से तप्त शिष्य पर, सद्गुरु करुणा जल बरसाते
एक दृष्टि दे अभय लुटाते, जो उनके चरणों में जाते

मोक्ष की इच्छा जिसके मन में, शांत चित्त जो आज्ञाकारी
शम, दम आदि साध लिए हैं, गुरु उपदेश करे फिर भारी

नहीं डरो तुम, नाश न होगा, भव तरने की युक्ति कहूँगा
जिस मार्ग से और गए हैं, वही मार्ग मैं तुम्हें कहूँगा

एक महान उपाय ऐसा, जिससे तू सहज तर जाये
परम आनंद मिलेगा तुझको, यदि उस पर तू चल पाए

वेदांत का अर्थ विचार, उत्तम ज्ञान को तू पायेगा
जग के दुःख का नाश भी होगा, सहज सुख राशि पा जायेगा

श्रद्धा, भक्ति, ज्ञानयोग, श्रुति इन्हें ही हेतु बताती
जो इनमें स्थित हो जाता, उन्हें शीघ्र मुक्ति मिल जाती

अज्ञान से हुआ है मोहित, अनात्म भाव में तू स्थित  
आत्म-अनात्म विवेक जगे जब, भस्म जग होता मूल सहित

साधक पूछे

बंधन क्या है, हुआ यह कैसे, कैसे अब तक टिका हुआ है ?
कैसे इससे होगी मुक्ति, आत्म-अनात्म, परमात्म भी क्या है ?

सद्गुरु बोले
धन्य है तू, कुल पावन तेरा, बंधन से छूटना चाहे
अज्ञान से मुक्ति पाकर, ब्रह्म भाव में टिकना चाहे

स्वप्रयत्न से  ही ज्ञान संभव है

पुत्र चुका सकता पितृ ऋण, भव बंधन से स्वयं ही छूटता
स्वयं ने ही बांधा है इसको, अन्य न कुछ भी कर सकता

सिर का बोझ उतारे कोई, तन का दुःख स्वयं ही मिटता
भूख-प्यास से पीड़ित हो तो, स्वयं को भोजन करना पड़ता

रोगी हो जो वही दवा ले, पथ्य-अपथ्य वही सेवे
किसी और के द्वारा औषधि, नहीं रोग हर, फल देवे

वैसे ही विवेकी जन को, स्वयं से ही ज्ञान होता है
चन्द्र दिखेगा निज नयनों से, दूजे से न दिख सकता है

अविद्या का बंधन है ऐसा, जाल कामना का है ऐसा

सौ करोड कल्प भी बीतें, स्वयं से खुले बंध यह ऐसा 

6 comments:

  1. अविद्या का बंधन है ऐसा, जाल कामना का है ऐसा
    सौ करोड कल्प भी बीतें, स्वयं से खुले बंध यह ऐसा

    ज्ञान की गंगा बहा रखी है…………और हम उसमे डुबकी लगा रहे हैं…………आभार्।

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  2. अविद्या का बंधन है ऐसा, जाल कामना का है ऐसा
    सौ करोड कल्प भी बीतें, स्वयं से खुले बंध यह ऐसा

    ...सदैव की तरह बहुत ज्ञानवर्धक और भक्तिपूर्ण...आभार

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  3. वाह ... झरने सा बहता निर्मल ज्ञान ...

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  4. फ ब्लॉगजगत को अमूल्य निधि दे रही हैं।

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  5. वैसे ही विवेकी जन को, स्वयं से ही ज्ञान होता है
    चन्द्र दिखेगा निज नयनों से, दूजे से न दिख सकता है
    waah ...

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  6. वन्दना जी, कैलाश जी, दिगम्बर जी, रश्मि जी और मनोज जी आप सभी सुधी जनों का आभार!

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