श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
सत्व गुण
जल सम निर्मल सत्व गुण है, रज, तम से मिल प्रेरित करता
प्रतिबिम्बित हो इसमें आत्मा, जड़ पदार्थ प्रकाशित करता
यम, नियम के प्रति हो श्रद्धा, भक्ति व मोक्ष अभिलाषा
त्याग असत् का, दैवी सम्पति, धर्म यही है सत गुण का
रहे अमानी, सदा प्रसन्न, तृप्त, शांत, परम में स्थित
सतो गुणी को यही शोभते, नित्य रहे आनंद समाहित
कारण शरीर
तीनों गुणों से युक्त हुआ जो, कारण देह यही कहलाता
बुद्धि जब विलीन हो जाती, सुषुप्ति में अभिव्यक्ति पाता
अनात्मा
देह, इन्द्रिय, मन व प्राण, अहं, विषय, भूत, अव्यक्त
हैं असत् ये सभी कार्य, अनात्म कह कर करते व्यक्त
आत्मा
परम का स्वरूप है सुंदर, जिसे जानकर मोक्ष है मिलता
नित्य पदार्थ, आधार अहं का, पंचकोश से पार जो मिलता
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति का, जो मन, बुद्धि का साक्षी
अहं भाव से स्थित रहता, पल-पल जो देखे वृत्ति
जो स्वयं सबको देख रहा है, किन्तु जिसे न कोई देखे
बुद्धि को प्रकाशित करता, बुद्धि न पर उसको देखे
जिसने सारे विश्व को व्यापा, जिसे न कोई व्याप्त कर सके
आभास रूप यह जगत अखिल, जिसके भासने पर ही दिखे
जिसके होने मात्र से ही, देह, इन्द्रियाँ, मन वर्तते
नित्य ज्ञान स्वरूप जो सत्ता, जिससे विषय जाने जाते
एक रूप है, बोध मात्र भी, आनंद रूप, नित्य अखंड
अंतर आत्मा, पुराण पुरुष भी, प्राण, इन्द्रियों का वाहक
अंतर आत्मा, पुराण पुरुष भी, प्राण, इन्द्रियों का वाहक
बुद्धि रूप गुफा में स्थित, इक अव्यक्त आकाश के भीतर
सूर्य समान तेज से अपने, प्रकाशित है परम सुखकर
मन व अहंकार का ज्ञाता, अनात्म को वही जानता
अविकारी, अकर्ता है वह, उनसा बन भी भिन्न ही रहता
न जन्मता, न ही मरता, बढ़ता नहीं है कभी न घटता
नित्य तत्व है इस घट में, घटाकाश सा लीन न होता
पर प्रकृति से, ज्ञान स्वरूप, निर्विशेष परम आत्मा
सत्-असत् का ज्ञान कराए, साक्षी है वह, वही है द्रष्टा
संयत चित्त हुआ जो साधक, प्रसन्न चित्त से उसको जाने
भव सागर को तर जायेगा, ब्रह्म रूप में उसको माने
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं.
बहुत सुन्दर ज्ञानपरक तथ्य।
ReplyDeleteज्ञान का प्रकाश फैलाती प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteati uttam.
ReplyDeletebahut sundar anita jee
ReplyDeletemauka mile to mere blog pe v aye...
हरेक जन्म में कारण शरीर एक ही रहता है ,लेकिन मनस ,सूक्ष्म &भौतिक शरीर बदल जाते हैं।
ReplyDelete-ब्रह्मर्षि पत्रीजी