श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
प्रश्न किया जो तूने साधक, सूक्ष्म और गम्भीर अति
भव बंधन से तरना चाहे, सावधान हो, दूँ यह मति
प्रथम हेतु वैराग्य मोक्ष का, आसक्ति का त्याग है दूजा
श्रवण, मनन, ध्यान करे फिर, द्वार खुलेगा फिर मुक्ति का
आत्म-अनात्म विवेक कह रहा, भली-भांति तू इसे विचार
मन में धारण कर ले इसको, यदि चाहे निज का उद्धार
स्थूल देह
मज्जा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त, चर्म और त्वचा
सप्त धातुओं से निर्मित हैं, चरण, पीठ, मस्तक व भुजा
कोई ‘मैं’ इस देह को मानता, कोई ‘मेरा’ है कहता
मोह आश्रय तन मानव का, स्थूल शरीर कहा जाता
क्षिति, जल पावक, गगन, समीर, पंच भूत जब मिल जाते
स्थूल देह के कारण होते, पांच विषय इनसे बन जाते
इन विषयों में बंधे हुए जन, कर्म दूत से प्रेरित होते
उच्च-निम्न अनेक योनियाँ, कर्मों के बल पर पाते
पांच विषय
मीन, पतंग, गज, सारंग, भ्रमर मृत्यु को हैं पाते
एक-एक विषय से बंध कर, व्यर्थ में वे मारे जाते
पांचों से जो बंधा हुआ है, मानव कैसे बच सकता है
विष सम घातक विषय हैं जो, क्यों न उनमें फँस सकता है
वही मोक्ष का भागी होगा, जो इस बन्धन से छूटे
दर्शन छहों पढ़ें हो चाहे, विषयी न मुक्ति पाए
क्षणिक हुआ वैराग्य जिसका, आशा ग्राह डूबा देगा
दृढ़ वैराग्य से जो मारे, वही पार भव सागर होगा
पग-पग पर मृत्यु ने घेरा, जो विष रूपी विषय न त्यागे
जो सन्मार्ग पर चल पड़ता है, इक न इक दिन वह जागे
यदि तुझे मुक्ति की इच्छा, विष रूपी विषयों को तज दे
शम, दम, दया और सरलता, संतोष, क्षमा का पी अमृत ले
वही मोक्ष का भागी होगा, जो इस बन्धन से छूटे
ReplyDeleteदर्शन छहों पढ़ें हो चाहे, विषयी न मुक्ति पाए
bilkul
क्षणिक हुआ वैराग्य जिसका, आशा ग्राह डूबा देगा
ReplyDeleteदृढ़ वैराग्य से जो मारे, वही पार भव सागर होगा
...बहुत सच कहा है...आभार
क्षिति, जल पावक, गगन, समीर, पंच भूत जब मिल जाते
ReplyDeleteस्थूल देह के कारण होते, पांच विषय इनसे बन जाते
गहन बातें, शाश्वत सत्य।
बहुत खूब...अनूठी रचना !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
प्रभावी अनुवाद।
ReplyDeleteक्षणिक हुआ वैराग्य जिसका, आशा ग्राह डूबा देगा
ReplyDeleteदृढ़ वैराग्य से जो मारे, वही पार भव सागर होगा
निस्सार ये संसार है........!!