श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
त्रयोविंशः सर्गः
लक्ष्मण की ओज भरी बातें,
उनके द्वारा दैव का खण्डन और पुरुषार्थ का प्रतिपादन तथा उनका श्रीराम के अभिषेक
के निमित्त विरोधियों से लोहा लेने के लिए उद्यत होना
सौंप राज्य अपने पुत्रों
को, पुत्रवत् कर प्रजा का पालन
वन को जाता है वृद्ध नरेश,
यही परम्परा है पुरातन
वानप्रस्थ नहीं लिया पिता
ने, इस कारण यदि आप समझते
राज्य भार आप का लेना, है विरुद्ध
उनकी आज्ञा के
जनता भी विद्रोह करेगी, त्याग
दीजिये इस शंका को
रक्षा करूंगा मैं राज्य की,
रोके जैसे भूमि सिन्धु को
यदि करूं न ऐसा तो मैं, वीरलोक
का होऊं न भागी
होने दें अपना अभिषेक, मंगलमयी
है यह सामग्री
रोकूँ सभी विरोधी बल को, हूँ
समर्थ अकेला ही मैं
मेरी ये बलवान भुजाएं, नहीं
हैं केवल शोभा हित ये
धनुष नहीं है यह आभूषण,
कमरबंद नहीं तलवार
खम्भे नहीं बनें बाणों से,
चारों हेतु शत्रु संहार
जीवित नहीं रहेगा शत्रु,
बिजली सी चमके तलवार
चाहे इंद्र वज्र ले आये,
हूँ करने को युद्ध तैयार
पट जाएगी सारी धरती, पिसे
हुए हाथी, घोड़ों से
गमन न सम्भव, भर जायेंगे, हाथ,
जांघ, मस्तक रथियों के
रक्त से लथपथ शत्रु सारे, जलती
हुई अग्नि सम होंगे
बिजली सहित मेघ हों जैसे, पृथ्वी
पर जो आज गिरेंगे
गोहचर्म के दस्ताने को, बांध
युद्ध मैं आज करूंगा
कौन पुरुष मेरे सम्मुख, निज
पौरुष पर अभिमान करेगा
कई बाणों से एक को मारूँ, मारूँगा
अनेक, एक से
मर्म स्थल पर चोट करूंगा, हाथी,
घोड़ों, व पुरुषों के
प्रभुता मिटेगी राजा की अब,
प्रभुत्व आपका हो स्थापित
अस्त्र बल से सम्पन्न मेरा,
प्रकटेगा शौर्य प्रज्ज्वलित
देने दान, पालन करने में, बाजूबंद
पहनने के भी
चंदन लेप के जो योग्य हैं, दो
भुजाएं आज ये मेरी
प्रकट करेंगी महा पराक्रम,
विघ्न डालने वालों हेतु
बतलाएं मैं किस शत्रु को,
यश, प्राण से विलग कर दूँ
जिस उपाय से भी यह पृथ्वी,
आपके अधिकार में आये
राम ! दास हूँ मैं आपका, उसके लिए आज्ञा दे दें
सुनकर लक्ष्मण की ये बातें,
आँसू पोंछे राम ने उनके
जो रघुवंश के वृद्धि कर्ता,
दी सांत्वना श्री राम ने
सौम्य ! मुझे तो तुम समझो,
आज्ञा पालन में दृढ़ अति
माता पिता की बात मानना, है
सत्पुरुषों का मार्ग यही
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में तेईसवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
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