Friday, December 18, 2015

लक्ष्मण की ओज भरी बातें, उनके द्वारा दैव का खण्डन और पुरुषार्थ का प्रतिपादन

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

त्रयोविंशः सर्गः
लक्ष्मण की ओज भरी बातें, उनके द्वारा दैव का खण्डन और पुरुषार्थ का प्रतिपादन तथा उनका श्रीराम के अभिषेक के निमित्त विरोधियों से लोहा लेने के लिए उद्यत होना

श्रीराम जब बोल रहे थे, नत मस्तक लक्ष्मण विचारें  
फिर सहसा शीघ्रता पूर्वक, दुःख व हर्ष के मध्य आये

भौहों को चढ़ा मस्तक पर, गहरी श्वासें लगे खींचने
मानो बिल में सर्प बैठकर, फुंकार हो लगा मारने

कुपित हुए सिंह के समान, मुख उनका जान पड़ता था
बड़ा कठिन था इस रूप में, उनकी ओर भी जरा देखना

जैसे हाथी सूंड हिलाता, दायाँ हाथ लगे हिलाने
टेढ़ी नजरों से लख बोले, गर्दन को सब ओर घुमाते

धर्म विरुद्ध आप समझते, भाई ! वन को न जाना  
शंका होगी जन-जन मन में, मानी नहीं पिता की आज्ञा

अवहेलना धर्म की होगी, यह शंका है मन में आपके
दैव तुच्छ है, प्रबल बताते, संदेह नहीं दोनों पर करते

स्वार्थ सिद्ध करने हेतु ही, ढोंग धर्म का रचा गया  
यदि ऐसा न होता तो, पहले ही दिया वर होता

लोक विरुद्ध कार्य होगा यह, जिसका आज आरम्भ हुआ
सिवा आपके अन्य किसी का, अभिषेक सहन न होगा

पिता के जिस वचन को मान, मोह में पड़ी आपकी बुद्धि
नहीं मानता उसे धर्म मैं, है निन्दित और अधर्म पूर्ण ही

सब कुछ करने में समर्थ हैं, फिर क्यों इसका पालन करते
है असत्य वरदान की बात, होता है बड़ा दुःख मन में

पुत्र का जो अहित करते हैं, उनका वचन न मानने योग्य
जो कायर है वही मानता, हैं पूजनीय दैव व भाग्य

जो समर्थ है पुरुषार्थ से, भाग्य बदल देने में अपना
बाधा पड़ने पर कार्य में, नहीं शिथिल हो वह बैठता

दैव बड़ा है या पुरुषार्थ, यह लोग आज देखेंगे
देव बली है या मनुष्य, निर्णय इसका भी करेंगे

जिन लोगों ने दैव के बल से, राज्याभिषेक को रुकता देखा
वे ही मेरे पुरुषार्थ से, देखेंगे विनाश को घटता  

अंकुश की भी न करे परवाह, तोड़ के सांकल गज दौड़े
उस मदमत्त की भांति दैव भी, मेरे पुरुषार्थ से लौट पड़े

लोकपाल, त्रिलोकी जन भी, रोक नहीं सकते अभिषेक
कैसे रोक सकेंगे पिताजी, विघ्न डाल राज्याभिषेक  

जिन लोगों ने किया समर्थक, आपस में वनवास का
छिपे रहेंगे वे ही जाकर, चौदह वर्षों तक वन में जा

पिता और उस कैकेयी की, आशा को मैं भस्म करूंगा
अति भयंकर दुःख पायेगा, जो मेरे विरोध में होगा

सहस्त्र वर्ष बीत जाने पर, जब आप वन में जाएँगे  
प्रजापालक रूप में तब भी, पुत्र आपके राजा होंगे





3 comments:

  1. सुंदर...
    अति सुंदर।

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  2. प्रतिभाओं की कमी नहीं, पर सामने लाने वाला भी चाहिए

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  3. कुलदीप जी व वासुदेव जी स्वागत व आभार !

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