श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
एकोनपञ्चाशः सर्गः
पितृ देवताओं द्वारा इंद्र को भेड़े के अंडकोष से युक्त करना तथा भगवान श्रीराम
के द्वारा अहल्या का उद्धार एवं उन दोनों दंपति के द्वारा इनका सत्कार
अति भयभीत हुए थे इंद्र, अंडकोष से रहित हुए जब
नेत्रों में त्रास छा गया, सिद्धों, देवों से यह बोले
तप भंग करने को मैंने, गौतम मुनि को क्रोध दिलाया
हुई तपस्या भंग मुनि की, देवों का ही काम किया
भारी शाप मुझे देकर, अंडकोष से रहित है किया
हरी तपस्या मैंने उनकी, पत्नी का मुनि ने परित्याग किया
यदि ऐसा मैं न करता, देवों का राज्य छिन जाता
तुम सब मिलकर प्रयत्न करो, अब कैसे अंडकोष मैं पाता
इंद्र का जब यह वचन सुना तो, अग्नि आदि देव, मरुद्गण
कष्यवाहन व पितृ देवों के, निकट गये वे सब मिलकर
पितृ गण ! आपका भेड़ा, धारण किये दो अंडकोष है
अर्पण कर दें दो कोष ये, इंद्र जिससे रहित
हुए हैं
परम संतोष प्रदान करेगा, अंडकोष से रहित यह भेड़ा
जो आपको करेगा अर्पण, आपसे उत्तम फल पायेगा
अग्नि की यह बात सुनी जब, किया यही पितृ देवों ने
भेड़े के अन्डकोषों को, स्थापित किया इंद्र की देह में
तब से ही समस्त पितृगण, ऐसे ही भेड़ों को पाते
दाताओं को दान जनित फिर, फलों के भागी बनाते
महातेजस्वी राम ! शीघ्र तुम, मुनि आश्रम में चलो
देवरुपिणी महाभागा जो, अहल्या का उद्धार करो
किया महर्षि को तब आगे, लक्ष्मण सहित श्रीराम ने
आश्रम में प्रवेश किया, थीं देदीप्यमान अहल्या तप से
देख नहीं सकते थे उनको, देव असुर कोई भी आकर
मायामयी सी वह लगती थीं, दिव्य स्वरूप किये थीं धारण
बड़े जतन से रचे अंग थे, घिरी धूम से अग्निशिखा सी
ढकी बादलों व ओले से, पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा सी
जल के भीतर उद्भासित हो, सूर्य की दुर्धर्ष प्रभा सी
शाप मिला जब से गौतम का, हर प्राणी से अदृश्य थीं
श्रीराम का दर्शन पाकर, अंत हुआ उनके शाप का
लक्ष्मण संग किया राम ने, स्पर्श अहल्या के चरणों का
मुनि वचनों को कर स्मरण तब, अहल्या ने किया सत्कार
अतिथि रूप में अपनाया फिर, पाद्य अर्घ्य आदि अर्पित कर
श्रीराम ने शस्त्रीय विधि से, आतिथ्य उनका अपनाया
देवों की दुन्दुभी बजी तब, फूलों को नभ से बरसाया
उत्सव सभी मनाते थे तब, गन्धर्व, अप्सराएँ मिलकर
विशुद्ध रूप को प्राप्त हुईं सब, करें प्रशंसा हर्षित होकर
महातेजस्वी गौतम भी तब, हर्षित हुए उन्हें देखकर
श्रीराम की पूजा करके, पुनः तपस्या आरम्भ कर
मिथिलापुरी को गये राम भी, गौतम से पाकर सत्कार
लक्ष्मण सहित बढ़ चले मार्ग पर, विश्वामित्र मुनि के साथ
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनचासवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
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