Wednesday, July 9, 2014

देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र-मंथन

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पंचचत्वारिंशः सर्गः
देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र-मंथन, भगवान रूद्र द्वारा हालाहल विष का पान, भगवान विष्णु के सहयोग से मन्दराचल का पाताल से उद्धार और उसके द्वारा मंथन, धन्वन्तरि, अप्सरा, वारुणी, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभ तथा अमृत की उत्पत्ति और देवासुर-संग्राम में दैत्यों का संहार  

विश्वामित्र की बातें सुनकर, विस्मित हुए राम-लक्ष्मण
स्वर्ग से आ सागर तक पहुँची, गंगा कथा सुनाई उत्तम

क्षण में बीती रात्रि हमारी, इसी कथा पर चिन्तन करते
पुण्य सलिला, त्रिपथगामिनी, पार चलें अब हम गंगा के

जो सदा पुण्य में तत्पर रहते, नाव ऋषियों ने भेजी है
सुंदर आसन बिछा है इसमें, तीव्र गति से यह आई है

पहले पार कराया उनको, तब ऋषियों के संग मुनि ने 
स्वयं उतरे फिर उत्तर तट पर, निकले पुरी की शोभा लखने

स्वर्ग समान रमणीय थी, नगरी थी वह दिव्य विशाला
कौन सा राजवंश यहाँ है ?, बड़े विनय से राम ने पूछा

वचन सुना जब मुनिश्रेष्ठ ने, पुरी का इतिहास बताया
इंद्र के मुख से सुनी कथा जो, सारा वह वृतांत बताया

दिति पुत्र, दैत्य सतयुग में, थे बलवान, देव भी वीर
मनों में उनके यह विचार था, अजर, अमर कैसे हों धीर

चिन्तन करते-करते सोचा, मंथन करें क्षीर सागर का
अमृतमय रस प्राप्त करेंगे, निश्चय ही अनुपम सागर का

वासुकि नाग बना फिर रस्सी, मन्दराचल की बनी मथानी
एक हजार वर्ष बीते जब, विष निकला जैसे हो अग्नि

बहुसंख्यक मुख वासुकि के, डसने लगे शिलाओं को तब
अग्नि समान महा भयंकर, हालाहल विष निकला दाहक

देव, असुर, मानवों को भी, करने लगा दग्ध वह विष
पशुपति रूद्र की गये शरण, देव सभी त्राहि-त्राहि कर

देवों के ऐसा कहने पर, प्रकट हुए तब देव देवेश्वर
शंख-चक्रधारी श्री हरि भी, प्रकट हुए तत्क्ष्ण आकर


4 comments:

  1. आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 10/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
    आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित हैं...आप के आगमन से हलचल की शोभा बढ़ेगी...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर...

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  2. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  3. खूबसूरत प्रभावी रचना ......

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  4. कैलाश जी व कौशल जी, स्वागत व आभार !

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