श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
पञ्चाशः सर्गः
श्रीराम आदि का मिथिला-गमन, राजा जनक द्वारा विश्वामित्र का सत्कार तथा उनका
श्रीराम और लक्ष्मण के विषय में जिज्ञासा करना एवं परिचय पाना
विश्वामित्र को आगे करके, राम,
लक्ष्मण को लेकर
चले आश्रम से गौतम के, तब ईशान कोण की ओर
मिथिला के यज्ञ मंडप में, विशवामित्र से कहा राम ने
अति सुंदर है यज्ञ समारोह, ब्राह्मण हैं नाना देशों के
बाड़े भरे सैकड़ों छकड़ों से, वेदों का स्वाध्याय हो रहा
निशिचत करें स्थान कोई अब, ठहरें हम सब भी जहाँ
एकांत में डेरा डाला, जहाँ जल था अति
सुलभ
राजा जनक भी सुनकर आये, शतानंद को लेकर संग
अर्ध्य लिए विनीत भाव से, अगवानी की महामुनि की
मुनि ने पूजा ग्रहण की तब, यज्ञ विषय में जिज्ञासा की
राजा के संग जो आये थे, मुनि, पुरोहित उपाध्याय सब
यथायोग्य मिले उन सबसे, नृप जनक ने कहा वचन तब
आसन पर हों विराजमान अब, सफल हुआ है यह आयोजन
चरण आपके यहाँ पड़े हैं, किया आपने यहाँ पदार्पण
बारह दिन ही शेष रहे हैं, अब मेरी यज्ञ दीक्षा के
दर्शन करें आप देवों का, भाग ग्रहण करने जो आयें
महामुनि मैं धन्य हुआ हूँ, सदा कल्याण आपका हो
देवों सम जो पराक्रमी हैं, वीर कुमार कौन हैं दोनों
सुंदर आयुध धारण करते, मन्दगति से जो चलते हैं
कमलदल से शोभित होते, ये दोनों पुत्र किसके हैं
चन्द्र और सूर्य सम जो, इस देश को शोभित करते
परिचय दें आप इनका जो, लगते हैं मिलते जुलते
राजा जनक का प्रश्न सुना जब, मुनि ने सारी बात सुनाई
दशरथ के ये पुत्र हैं दोनों, घटना हर
तब कह बताई
गौतम मुनि से भेंट हुई है, किया अहल्या का उद्धार
धनुष यज्ञ के विषय में सुनकर, आए यहाँ हैं मेरे साथ
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचासवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
वाह !! मंगलकामनाएं आपको !
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