श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
च्तुश्च्त्वारिंशः सर्गः
ब्रह्माजी का भगीरथ की प्रशंसा करते हुए उन्हें गंगाजल से पितरों के तर्पण की
आज्ञा देना और राजा का वह सब करके अपने नगर को जाना, गंगावतरण के उपाख्यान की
महिमा
गयी रसातल में गंगा जब, जहाँ पूर्वज भस्म हुए थे
ब्रह्मा जी वहाँ आये तब, वीर भगीरथ से बोले
राजा सगर के मृत पुत्रों का, तुमने ही उद्धार किया
जब तक सागरजल है जग में, स्वर्ग में उनका वास रहेगा
भागीरथी कहलाएंगी गंगा, ज्येष्ठ पुत्री तुम्हारी होंगी,
त्रिपथगा, दिव्या नामों से, भी इनकी प्रसिद्धि होगी
सगर, अंशुमान, दिलीप ने, सबने यही कामना की थी
अब तुम तर्पण करो आरम्भ, पूर्ण प्रतिज्ञा तब होगी
तुमने जो यह कार्य किया है, ब्रह्मलोक के हो अधिकारी
अब मैं निज लोक को जाता, तुम भी लौट चलो राजधानी
अर्चन किया नरेश ने उनका, विधिवत तर्पण किया सभी का
सफक मनोरथ हुआ उनका तब, पुनः किया शासन राज्य का
गंगा जी कथा मनोहर, हे राम ! सुनाई तुमको
सन्ध्यावन्दन करो अब जाकर, प्रिय तुम्हारा कल्याण हो
मंगलमय यह कथा सुहानी, आयु बढ़ाने वाली है
धन, यश, आयु, स्वर्ग सभी को, प्राप्त कराने वाली है
देव, पितृ प्रसन्न होते हैं, जो हर वर्ण को कथा सुनाता
सभी कामना पा लेता वह, जो इसका श्रवण है करता
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौवालीसवाँ
सर्ग पूरा हुआ.
ReplyDeleteमंगलमय यह कथा सुहानी, आयु बढ़ाने वाली है
धन, यश, आयु, स्वर्ग सभी को, प्राप्त कराने वाली है | बढ़िया पंक्तियाँ
उम्दा रचना |
आनंद दायक, सुखद, सरल !!
ReplyDeleteआशा जी व सतीश जी, स्वागत व आभार !
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