श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से
संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का
उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना
यही सोचते हुए मुनि ने, ब्रह्मा जी को श्लोक सुनाया
शायद उचित नहीं था शाप, शोक से उनका मन घबराया
ब्रह्मा हँसे समझ कर पीड़ा, श्लोक ही है यह वाक्य छन्दबद्ध
नहीं करो अन्यथा विचार तुम, मुझसे ही प्रेरित यह शब्द
वर्णन करो राम चरित्र का, धर्मात्मा व वीर पुरुष जो
नारद जी से जो भी सुना है, श्लोक बद्ध वह कथा कहो
गुप्त या प्रकट वृतांत जो, राम, लक्ष्मण, व सीता के
सहज ज्ञात होंगे वे तुमको, कुछ भी मिथ्या नहीं लिखोगे
जब तक इस पावन धरती पर, सत्ता है नदियों, पर्वत की
तब तक रामायण भी रहेगी, तब तक महिमा है उसकी भी
जब तक प्रचलित राम कथा, तब तक तुम भी हो सृष्टि में
ऊपर, नीचे, ब्रह्म लोक में, जहाँ तुम्हारी आये मन में
जब अंतर्धान हुए ब्रह्मा जी, शिष्यों सहित मुनि थे विस्मित
बार-बार गाते थे श्लोक वे, शिष्य हुए बड़े प्रसन्न चित्
कहने लगे शिष्य उनके तब, गुरुदेव ने दुःख प्रकटा था
शोक बना वह श्लोक रूप, चार चरण से युक्त वाक्य था
सारे घटना क्रम याद आ रहे हैं। विलक्षण रचना।
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteमनोज जी, प्रसन्न जी, कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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