श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से
संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का
उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना
नारद मुनि के वचन सुने जब, आदर सहित सँग शिष्यों के
महामुनि का किया था पूजन, वाणी विशारद वाल्मीकि ने
हो सम्मानित नारद ने तब, प्रस्थान की आज्ञा माँगी
गगन मार्ग से चले गए वे, अनुमति जब जाने की पायी
तमसा तट गए वाल्मीकि, गंगा से जो दूर नहीं था
देवलोक गए नारद को, दो घड़ी ही समय हुआ था
तमसा तट कीचड़ रहित था, मुनि बोले अपने शिष्य से
भरद्वाज, यह तट सुंदर है, स्वच्छ यहाँ जल सु-मन के जैसे
कलश यहीं रख दो, हे तात, वल्कल मुझे सौंप दो मेरा
यहीं होगा स्नान आज अब, उत्तम तीर्थ है यह तमसा का
सुन शिष्य ने आज्ञा मानी, दिए वस्त्र वल्कल गुरुवर को
लिये वस्त्र विचरण करते थे, देख-देख उस सुंदर वन को
सुन्दर प्रस्तुतिकरण्।
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