श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
तृतीयः सर्गः
वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध
विषयों का संक्षेप से उल्लेख
नारद जी से सुनी रामायण, धर्म, अर्थ, मुक्ति प्रदायिनी
पुनः हृदय में चिंतन करते, मुनि राम की कथा सुहावनी
कुश के आसन पर विराजे, हुए समाधि में निमग्न
रामचरित्र का चिंतन करते, साथ हृदय में अनुसंधान
राजा-रानी, राम-सीता की, कितनी बातें प्रकट हुईं
हँसना, बोलना, चलना आदि, देखे साक्षात
सभी
वन की सारी लीलाएं भी, सब उनकी दृष्टि में आयीं
योग आश्रय से मुनिवर ने, हर घटना प्रत्यक्ष पायी
सबके प्रिय राम का जीवन, योग समाधि में देखा
महाकाव्य रचने हेतु तब, वाल्मीकि ने की चेष्टा
नारद जी ने कहा था जैसे, बैठे लिखने क्रम में उसी
सागर रत्नों की खानि ज्यों, महाकाव्य गुण, अलंकार, की
सब श्रुतियों का सारभूत यह, हर चित्त को हरने वाला
चारों पुरुषार्थ का दाता, कर्णों को प्रिय लगने वाला
जन्म राम का, पराक्रम भी, क्षमा, सत्य व सौम्य भाव
वर्णन किया कवि ने इसका, लोकप्रियता व सर्व प्रिय भाव
विश्वामित्र के साथ घटीं थीं, जो अद्भुत घटनायें उस वन
धनुषभंग, ब्याह सीता सँग, उर्मिला का भी किया चित्रण
राम-परशुराम संवाद, गुण उनके, अभिषेक की सारी बातें
केकैयी की दुष्टता, शोक दशरथ का, विघ्न राज्यभिषेक में
बहुत रोचक....आभार
ReplyDeleteरोचक शैली में सिलसिलेवार कथा आगे बढ़ रही है।
ReplyDeleteकैलाश जी, आभार व स्वागत !
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