Thursday, May 17, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् द्वितीय सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्वितीय सर्ग
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तट पर क्रौंचवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना



क्रौंच पक्षियों का इक जोड़ा, निकट विचरता था उनके
मधुर स्वरों में कलरव करता, सँग सदा जो एक-दूजे के

वाल्मीकि भगवान ने देखा, क्रौंच पक्षियों के जोड़े को
इक निषाद ने उस जोड़े से, हत कर डाला नर पक्षी को

पापपूर्ण विचार थे जिसके, जन्तुओं का अकारण वैरी था
मुनि देखते थे हतप्रभ हो, बाण लगा जब उस निषाद का

खून से लथपथ गिरा धरा पर, तड़पा पंख फड़फड़ा कर
देख पति को घायल, रोयी, क्रौंची करुण चीत्कार स्वर

उत्तम पंखों वाला खग वह, सदा विचरता था उसके सँग
प्रेम से मतवाला था पक्षी, मस्तक का था ताम्र वर्ण

दुःख से पीड़ित हुई रो रही, ऐसे पति से वियुक्त हुई
देख दुर्दशा उर भर आया, दयालु थे धर्मात्मा ऋषि

करुणामय स्वभाव था जिनका, है अधर्म निश्चय हुआ जब
रोती हुई क्रौंची को लख कर, कहे निषाद से ये शब्द तब



5 comments:

  1. सुन्दर वर्णन

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  2. एक नए रूप से कुछ जानने को मिला । धन्यवाद ।

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  3. बहुत सी भूली-बिसरी कहानी याद आ जाती है इस काव्य के माध्यम से।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार

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  5. वन्दना जी, प्रेम जी, मनोज जी व कैलाश जी आपका स्वागत व आभार!

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