श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
ध्यान विधि
मन को ब्रह्म में स्थित करें जब, तन स्थिर, इन्द्रियाँ संयमित
तन्मय होकर अखंड वृत्ति में, आत्म ब्रह्म एकता हो घटित
अनात्म चिंतन ही दुःख का कारण, मोहरूप देहाध्यास
मुक्ति का कारण आत्मा, आत्मचिंतन का हो अभ्यास
विज्ञानमय कोष में स्थित, स्वयंप्रकाश साक्षी आत्मा
अनित्य पदार्थों से पृथक हुआ जो, वही लक्ष्य हो सदा ध्यान का
चिंतन सदा आत्मभाव का, करे अखंड वृत्ति से ध्यान
परमात्मा में स्थित होकर, आनंद रस का कर ले पान
वाह ……………गहन अनुभूति
ReplyDeleteचिंतन सदा आत्मभाव का, करे अखंड वृत्ति से ध्यान
ReplyDeleteपरमात्मा में स्थित होकर, आनंद रस का कर ले पान
....शास्वत सत्य...आभार
बेहतरीन ज्ञानवर्धक सुंदर रचना,...
ReplyDeleteमेरे पोस्ट के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे
सुन्दर,सारगर्भित और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए आभार,अनीता जी.
ReplyDeleteवन्दना जी, कैलाश जी, धीरेन्द जी, व राकेश जी, आप सभी का स्वागत व आभार!
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