Monday, August 1, 2011

एकादशोऽध्यायः विश्वरूपदर्शनयोग



एकादशोऽध्यायः
विश्वरूपदर्शनयोग

मुझपर है अनुग्रह तुम्हारा, परम गोपनीय ज्ञान बताया
सुना आध्यात्मिक वचन हे केशव, मेरा घोर अज्ञान मिटाया

कैसे उत्पन होती सृष्टि, प्रलयकाल कैसे आता है
कैसे अविनाशी परमेश्वर, सब संसार रचा जाता है

तुम जैसा कहते हो केशव, ऐसा ही है, यही मानता
ऐश्वर्यशाली रूप तुम्हारा, मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता

हे प्रभु यदि मैं सक्षम हूँ, देख सकूं वह विश्वरूप
कृपा कर हे योगेश्वर !, दिखाएँ वह अविनाशी रूप

देख पार्थ, नाना रूपों को, मेरे अद्भुत ऐश्वर्य को
शत, सहस्त्र विविध वर्णों को, नाना दैवी आकृतियों को

आदित्यों, वसुओं, रुद्रों को, अश्विनीकुमारों व देवों को
पहले कभी न देखा किसी ने, ऐसे अद्भुत कई रूपों को

जो भी तू देखना चाहे, तत्क्षण इस रूप में देख
वर्तमान या भविष्य में, चर अचर सभी को देख

किन्तु इन मृण्मयी आखों से, देख न सकता इस रूप को
दिव्य दृष्टि देता हूँ तुझको, देख मेरे ऐश्वर्य को

निज दिव्य स्वरूप दिखलाया, इतना कहकर योगेश्वर ने
कृष्ण महाशक्तिशाली हैं, संजय बोले धृतराष्ट्र से

मुख अनेक, अनेक नेत्र थे, अद्भुत था दर्शन उसका
दिव्य अस्त्र, दिव्य भूषण थे, दिव्य हार ,वस्त्र धारे था

दिव्य अनोखी सुगंध आ रही, तेजोमय असीम रूप था
चारों ओर व्याप्त था अनुपम, सब ओर ही उसका मुख था

हजार सूर्य साथ उगे हों, उससे तेज प्रकाश था उसका
पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को, एक जगह पर उसने देखा

विस्मित हुआ और रोमांचित, अर्जुन का मन झुका प्रेम से
हाथ जोड़ कर शीश झुकाए, करने लगा प्रार्थना प्रभु से

कमलासीन ब्रह्मा, शिव शंकर, अन्य ऋषिगण और देवता
दिव्य सर्प, विविध जीव भी, सबको तुममें मैंने देखा

हे विश्वेश्वर, हे विश्वरूप,  हस्त, उदर, मुख, नेत्र अनेक
आदि, मध्य, अंत न दिखता, सब ओर फैले तुम एक

हे मुकुटयुक्त, गदाधारी, चक्रपाणि हे प्रकाश पुंज
अग्नि और सूर्य सम प्रज्ज्वलित, नेत्र चुंधियाते हैं देख

परम जानने योग्य आप हैं, परम आश्रय इस सृष्टि के
अव्यय तथा पुराण पुरुष भी, रक्षक हैं आप धर्म के 

6 comments:

  1. आप एक बहुत ही पवित्र और महान काम कर रहीं हैं{

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  2. बहुत सुन्दर......आभार

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  3. मुख अनेक, अनेक नेत्र थे, अद्भुत था दर्शन उसका
    दिव्य अस्त्र, दिव्य भूषण थे, दिव्य हार ,वस्त्र धारे था
    ahobhagya

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  4. कृष्ण के विराट रूप का काव्यात्मक निदर्शन .सुन्दर रचना ,सन्देश परक कथा सी .कृपया यहाँ भी पधारें .सुन्दरम ,मनोहरं ,आभार .कृपया यहाँ ही पधारें -
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  5. हे विश्वेश्वर, हे विश्वरूप, हस्त, उदर, मुख, नेत्र अनेक
    आदि, मध्य, अंत न दिखता, सब ओर फैले तुम एक
    अद्भुत!!!

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  6. धन्य हो तुम !

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