Wednesday, August 24, 2011

चतुर्द्शोऽध्यायः गुणत्रयविभागयोग


चतुर्द्शोऽध्यायः
गुणत्रयविभागयोग

सब ज्ञानों में परम ज्ञान है, पुनः कहूँ मैं उसे तुम्हें
जिसे जान जन मुक्त हो गए, परम सिद्धि को प्राप्त हुए

जो इस ज्ञान को धारण करते, प्राप्त मुझे ही वे नर होते
प्रलयकाल में न घबराते, कल्प आदि में नहीं जन्मते

महत्-ब्रह्म मूल प्रकृति ही, गर्भ योनि है सब भूतों की
चेतन मैं स्थापित करता, इन दो के मेल से होती सृष्टि

प्रकृति है माता, मैं ही पिता हूँ, जन्माते जो सब जीवों को
सतो, रजो, तमो, तीनों गुण, ये बांधते हैं आत्मा को

सत गुण सदा प्रकाश युक्त है, निर्मल और विकार रहित है
ज्ञान के अभिमान से बांधे, सुख हेतु बंधन सहित है

इच्छा से उपजे है रजोगुण, कर्मों से यह सदा बांधता
कर्मों का फल भी तो प्राणी, इसके कारण ही चाहता

तमो गुण अज्ञान से उपजे, करता मोहित सब भूतों को
निद्रा व आलस्य रूप में, या प्रमाद से बांधे जीवों को

सुख मिलता है सतो गुणी को, कर्म में रत है रजो गुणी
ज्ञान को ढककर सदा मोह में, डूबे प्रमाद में तमो गुणी

रज, तम दबा के सत गुण बढ़ता, सत, तम दबा बढ़े रजो गुण
ऐसे ही सत, रज को दबा के,  बढ़ता जाता है तमो गुण

चेतनता व विवेक बढ़ा हो, मन में न विकार उपजता
भीतर छाया हो प्रकाश जब, तब तन में सत गुण बढ़ता

कर्मों में जब मन लगता हो, भीतर स्वार्थ व लोभ बढ़ा हो
जगी लालसा, बढ़े अशांति, जब तन में रज गुण बढता हो

अंतः करण में अप्रकाश है, जब तमो गुण बढ़ जाता
व्यर्थ चेष्टा इन्द्रियों की, निद्रा व आलस्य सताता

मृत्यु मिले यदि सतो गुणी को, निर्मल दिव्य लोक को पाता
रजो गुणी मृत होकर पुनः, मानव लोक में लौट के आता

कीट, पशु आदि योनि में, तमो गुणी मर कर जाता है
राजस कर्म का फल दुःख है, श्रेष्ठ कर्म का फल निर्मल है

सत्व गुण से ज्ञान उपजता, लोभ रजो गुण से उपजे
मोह, प्रमाद तमो गुण से, साथ ही अज्ञान भी उपजे

तीनों गुण ही हैं कर्ता, जो इनको ऐसा जानता
गुणातीत मुझ परमात्मा को, तत्वज्ञानी वह पा जाता

तीनों गुण ही जन्म के कारण, जो इनका उल्लंघन करता  
जन्म, मृत्यु, जरा का दुःख वह, तज के परमानंद को पाता


4 comments:

  1. बहुत ही मनमोहल छंदयुक्त शैली में अनुवाद..बहुत सुंदर।

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  2. वाह बहुत ही रोचक अन्दाज़ मे गीता ज्ञान मिल रहा है आभार्।

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  3. आदरणीया अनिता जी
    सादर प्रणाम !


    भगवद्गीता के भावानुवाद की यह पूरी शृंखला विषय पर आपकी सिद्धहस्तता और विद्वता का सशक्त उदाहरण है … बहुत रोचक भी है ! आपकी श्रम-साधना श्लाघनीय है … नमन !

    बीच में कुछ कड़ियां जो छूट गईं थीं … अभी पढ़ीं …
    हृदय आपके प्रति विनम्र श्रद्धा से भर गया है ! आभार सहित मंगलकामनाएं !!

    विलंब से ही सही…
    ♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. आप सभी सुधी पाठकों का हृदय से आभार! ईश्वर की कृपा से ही यह श्रृंखला लिखी जा रही है..कृष्ण ही प्रेरक है.

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