Thursday, August 18, 2011

त्र्योदशोऽध्यायः क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग


त्र्योदशोऽध्यायः
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग

प्रकृति-पुरुष, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ, इन्हें जानने का इच्छुक
ज्ञान किसे कहते हैं केशव, ज्ञेय किसे मानते हो तुम

यह शरीर क्षेत्र है अर्जुन, क्षेत्रज्ञ जो इसे जानता  
जो इनके तत्व को जाने, ऐसा ही है वह मानता

सब देहों में जीवात्मा, सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ है
मैं ही हूँ वह जीवात्मा, वही सभी में क्षेत्रज्ञ है

प्रकृति-पुरुष का जो भेद है, और प्रभाव उनका जो है
इन्हें जानना ही तत्व से, कहलाता वह शुद्ध ज्ञान है

ऋषियों ने गाया है इसको, वेदों ने भी इसे बताया
ब्रह्मसूत्र में भी वर्णित है, ज्ञानी ने भी इसे सुनाया

पंच महाभूतों संग प्रकृति, अहंकार, बुद्धि व इन्द्रियां
विषय इन्द्रियों के संग पांचों, यह है क्षेत्र कहा जाता  

सुख-दुःख, इच्छा और द्वेष, ये सब हैं विकार क्षेत्र के
देह स्थूल, धृति, चेतना, ये क्षेत्र में सदा हैं रहते

भाव अमानी, दम्भ न होना, किसी जीव को नहीं सताना
शुद्धि बाहर-भीतर रखना, मन वाणी की सदा सरलता

क्षमाभाव, सेवा गुरुजन की, हो स्थिरता अंतः करण की
निरहंकारिता, निर्ममता, शम, दम, संयम, अनासक्ति

मृत्यु, जरा रोग आदि में, दुःख व दोषों का देखना
निर्मोही, समबुद्धि रखना, चाह सदा एकांत में रहना

अध्यात्म में सदा स्थिति, परमात्मा को सदा देखना
ज्ञान इसी सबको कहते है, तत्व ज्ञान को धारण करना

जो इसके विपरीत है अर्जुन, अज्ञान उसे तू जान
जो जानने योग्य है जग में, अब मैं उसका करूं बखान

अर्जुन तुझसे वही कहूँगा, सत् नहीं वह न ही असत् है
आदि अंत नहीं है उसका, सब ओर व्याप्त वह ब्रह्म है

हर दिशा में नेत्र हैं उसके, अनगिन सिर, मुख, हस्त अनेक
पांव हर दिशा में उसके, वही परमब्रह्म परमेश्वर एक

शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, वह सबको अनुभव करता
किन्तु रहित है सब विषयों से, अनासक्त, निर्लिप्त रहता

निर्गुण है पर गुणों का भोक्ता, करता धारण-पोषण भी
भीतर-बाहर जड़-चेतन के, वही ब्रह्म है चर-अचर भी

बुद्धि से नहीं जाना जाता, सूक्ष्म अति है, अविज्ञेय है
दूर से दूर वही है अर्जुन, और निकट से निकट वही है

वह विभक्त सा पड़े दिखाई, वह परमात्मा विभाग रहित है
वही जानने योग्य है अर्जुन, ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी वही है

ज्योतियों की ज्योति है वह, माया से परे तू जान
बोध स्वरूप, जानने योग्य, सबके उर में है विद्यमान 

3 comments:

  1. यह क्रम अनवरत चलता रहे!
    बेहद सुंदर भावानुवाद!!!

    सादर!

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  2. मन को बहुत शांति मिली..आपका प्रयास बहुत सराहनीय है..आभार

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  3. नमस्कार....
    बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

    मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

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    नीलकमल वैष्णव "अनिश"

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    MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

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