अष्टमोऽध्यायः
अक्षरब्रह्मयोग (अंतिम भाग)
अब मैं तुम्हें कहूँगा अर्जुन, उन दोनों कालों का विवरण
जिनमें जाकर पुनः लौटते, या नहीं होता पुनरागमन
जिस मार्ग में अग्निदेव हैं, शुक्ल पक्ष और दिवस काल है
नही लौटता योगी पुनः उनसे, जो उत्तरायण के छह मास हैं
धूम्र देव हैं जिस पथ पर, कृष्ण पक्ष और रात्रि काल है
चन्द्रलोक को जाता योगी, जब दक्षिणायण के छह मास हैं
प्रथम मार्ग से जो योगीजन, परमधाम को प्राप्त हो गए
नहीं लौटते पुनः धरा पर, मुक्त हुए वे मुझे पा गए
कृष्ण पक्ष में जो नर जाते, पुनः उनका आगमन होता
शुभ कर्मों का फल भोगते, स्वर्ग कभी न शाश्वत होता
इन दोनों को जान पार्थ तू, मोहित न पल भर को हो
समबुद्धि को प्राप्त हुआ तू, नित्य निरंतर योगयुक्त हो
योगीजन इस भेद को जानें, फिर न उन्हें पुण्य भी बांधे
यज्ञ, तप और दान धर्म का, कर उल्लंघन परम पद पा लें
शुभ ज्ञान की गंगा ..
ReplyDeleteabhar ...
बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक..आभार
ReplyDeletemann kee khurak achhi rahi
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक और ज्ञानवर्धक पोस्ट ........पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद
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