Sunday, July 10, 2011

अष्टमोऽध्यायः अक्षरब्रह्मयोग



अष्टमोऽध्यायः
अक्षरब्रह्मयोग

ब्रह्म क्या है, हे पुरुषोत्तम !, और किसे कहते अध्यात्म
अधिभूत किसे कहते  हैं, क्या है, हे केशव ! यह कर्म

अधियज्ञ किसे कहते हैं, कैसे वह रहता है तन में
युक्तचित्त ज्ञानी जन तुमको, कैसे जानें अंतकाल में

परम अक्षर है ब्रह्म, हे अर्जुन !, जीवात्मा को जान अध्यात्म
भूतों का भाव उपजाये, ऐसा त्याग कहलाये कर्म

जो उपजे व नष्ट हो गए, वे पदार्थ अधिभूत तू जान
अधिदैव ब्रह्मा को कहते, अधियज्ञ तू मुझको मान

अंतकाल में मेरा स्मरण, करके जो नर प्राण त्यागता
मुझे प्राप्त होता निसंशय, हे अर्जुन ! मैं तुझे बताता

जिस-जिस भाव को स्मरण करेगा, प्राप्त उसी को वह होगा
 जिसमें जीवन भर रमा है, अंतकाल में वही रुचेगा

इसीलिए हे प्रिय अर्जुन तू, क्षण-क्षण में कर चिंतन मेरा
युद्ध भी कर तू मुझमें रहकर, निस्संदेह तू मुझे मिलेगा

एकीभाव से परमब्रह्म में, ध्यानयोग से युक्त हुआ जो
दिव्य पुरुष जो परम प्रकाशित, प्राप्त करेगा उस ईश्वर को

सृष्टि का यह नियम अटल है, जो भी ध्यान योग में रत
उसे प्राप्त होगा परमेश्वर, दिव्यपुरुष वह परम प्रकाशित

सर्वनियन्ता, सर्वज्ञ, है अनादि वह अति सूक्ष्म
सबको धारण-पोषण करता, अचिन्त्य चेतन सूर्यसम

विद्यावान, शुद्ध, चेतन, अन्तर्यामी जो भजता है
अंतकाल में स्मरण करता, प्रभु को प्राप्त हुआ करता है

भृकुटी के मध्य में अपने, प्राण टिकाकर ध्यान करे
निश्चल मन से अंतकाल में, दिव्य परम पुरुष को भजे

 सच्चिदानंद घन रूप परमेश्वर, अविनाशी वेदज्ञ कहते
आसक्ति रहित महात्मा, जिस परम पद को चाहते

परम पद की करें कामना, ब्रह्मचारी सदा मन में
उस श्रेष्ठ पद का विवरण, संक्षेप में सुन तू मुझसे 

6 comments:

  1. अष्टमोऽध्यायः
    अक्षरब्रह्मयोग

    क्या ये गीता से है ?

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  2. भूतों का भाव उपजाये, ऐसा त्याग कहलाये कर्म

    अनीता जी , 'कर्म' की उपरोक्त परिभाषा के
    बारे में आपके विचार जानना चाहूँगा.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  3. राकेश जी, मेरे विचार से भूतों का भाव से तात्पर्य है प्राणियों का होना अर्थात अस्तित्त्व में आना और इसके लिये परम ब्रह्म का अपनी निष्क्रिय अवस्था का त्याग करना ही कर्म है.

    नीलेश जी, लगता है आप बहुत दिनों के बाद आये हैं, यह पोस्ट भगवद्गीता पर ही आधारित है.
    रश्मि जी, आभार !

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  4. भगवद गीता के परम तत्वों का सुन्दर काव्यानुवाद !
    साधुवाद स्वीकार करें !

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  5. जिस-जिस भाव को स्मरण करेगा, प्राप्त उसी को वह होगा
    जिसमें जीवन भर रमा है, अंतकाल में वही रुचेगा

    बहुत शांति मिलती है आपकी ये श्रंखला पढ़ कर ..
    इतना ज्ञान भरा है ...इनमे ...
    abhar apka ..

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