Tuesday, June 28, 2016

नगर के वृद्ध ब्राह्मणों का श्रीराम से लौट चलने के लिए आग्रह करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

पञ्चचत्वारिंशः सर्गः

श्रीराम का पुरवासियों से भरत और महाराज दशरथ के प्रति प्रेम-भाव रखने का अनुरोध करते हुए लौट जाने के लिए कहना; नगर के वृद्ध ब्राह्मणों का श्रीराम से लौट चलने के लिए आग्रह करना तथा उन सबके साथ श्रीराम का तमसा तट पर पहुँचना 

ब्राह्मणों के हितैषी हो तुम, इसीलिए हम पीछे आते
अग्निदेव भी चढ़ कंधों पर, अनुसरण तुम्हारा करते

श्वेत छत्र जो हमने धारे, शरद काल के बादल जैसे
वाजपेय यज्ञ में ये सब, हम सभी को प्राप्त हुए थे

श्वेत छत्र राजकीय जो, नहीं पिता से तुमने पाया
 किरणों से संतप्त हुए हो, हम तुमपर करेंगे छाया

वेद मन्त्रों के पीछे ही, बुद्धि सदा हमारी चलती
बनी है वही वनवास का, अनुसरण अब करने वाली

परम धन हैं वेद हमारे, हृदयों में सदा जो स्थित
सदा घरों में ही रहेंगी, स्त्रियाँ घर में सुरक्षित

पुनः नहीं निश्चय करना, कर्त्तव्य हेतु अब अपने
किया है निश्चय साथ चलेंगे, तो भी हम इतना कहते

ब्राह्मण आज्ञा का तुमने भी, पालन यदि नहीं किया  
कौन दूसरा प्राणी जग में, धर्म मार्ग पर चल सकेगा  

केश हमारे श्वेत हुए हैं, धूल भरी है अब इनमें
मस्तक झुका कर दंडवत, लौट चलो विनती यह करें

बहुत ब्राह्मण ऐसे भी हैं, यज्ञ किया आरम्भ जिन्होंने
यज्ञों की समाप्ति इनके, निर्भर लौटने पर तुम्हारे

स्थावर, जंगम सभी भक्त हैं, सब तुमसे प्रार्थना करते
स्नेह दिखाओ उन भक्तों पर, जो स्वयं कह नहीं सकते

वेगहीन हैं वृक्ष सभी ये, चल न सकते साथ तुम्हारे
सनसन स्वर वायु से होता, उनसे मानो तुम्हें पुकारें

त्याग चेष्टा दी जिन्होंने, चारा चुगने भी न जाते
वे पक्षी भी करें प्रार्थना, क्योंकि तुम कृपा करते

इस प्रकार पुकार लगाते, ब्राह्मणों पर कृपा करने
तमसा पड़ी दिखाई उनको, ज्यों राम को लगी रोकने

पहुंच वहाँ थके घोड़ों को, खोल सुमन्त्र ने टहलाया
नहला उनको देकर जल, चरने हेतु तब छोड़ दिया



इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में पैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ.

No comments:

Post a Comment