Friday, June 24, 2016

सुमित्रा का कौसल्या को आश्वासन देना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

चतुश्चत्वारिंशः सर्गः

सुमित्रा का कौसल्या को आश्वासन देना

कौसल्या का देख विलाप, श्रेष्ठ नारियों में जो थी
धर्मशीला सुमित्रा ने तब, धर्मयुक्त यह बात कही

गुणवान, पुरुषों में श्रेष्ठ, पुत्र आपके महाबली हैं
अश्रु बहाना उनके हित, रोना-धोना व्यर्थ ही है

पिता को सत्य बनाने हित जो, राज्य त्याग वन चले गये
उत्तम धर्म में स्थित हैं वे, सुखमय जो दोनों लोकों में

लक्ष्मण हैं निष्पाप दयालु, शोक नहीं उचित हित उनके  
श्रीराम के प्रति समर्पित, लाभ ही है उनका इसमें

सुख भोगने योग्य जो सीता, भलीभांति सोच समझ कर
करती है अनुसरण पति का, कोई नहीं जिनसे बढ़कर

कीर्तिमयी ध्वजा फहराते, पालन करते सत्यव्रत का
धर्म स्वरूप तुम्हारे सुत को, प्राप्त नहीं श्रेय कौन सा

 पावनता व माहात्म्य उनका, निश्चय ही सूर्य जानते
अपनी किरणों द्वारा उनके, तन को तप्त नहीं करते

हर ऋतु में मंगलमय वायु, सेवा करेगी श्रीराम की
रात्रि में चाँदनी शीतल, किरणों का आलिंगन देगी

तिमिध्व्ज के पुत्र को मारा, श्रीराम ने जब युद्ध में
दिव्यास्त्र प्रदान किये थे, उन वीर को विश्वामित्र ने

बाहुबली वे शूरवीर हैं, महलों में जैसे रहते थे
स्वयं का ही आश्रय लेकर, निडर हुए रहेंगे वन में  

शत्रु प्राप्त हुए विनाश को, बाणों का लक्ष्य बन जिनके
कैसे नहीं रहेंगे प्राणी, उन राम के शासन में

शारीरिक शोभा जैसी है, है पराक्रम जैसा उनका
शक्ति भी कल्याणकारिणी, उससे जान यही पड़ता

शीघ्र लौटकर आयेंगे वे, राज्य प्राप्त करेंगे अपना
वन में रहें या रहें नगर में, नहीं अहित हो सकता उनका

सूर्य के भी सूर्य राम हैं, अग्नि के भी दाहक हैं
प्रभु के प्रभु, क्षमा क्षमा की, देव देव के, भूत उत्तम हैं

होंगे राज्य पर अभिषिक्त, पुरुषशिरोमणि राम शीघ्र ही
पृथ्वी, सीता व लक्ष्मी, पा साथ इन तीनों का ही

जिनको नगर से जाते देख, व्याकुल है जनसमुदाय अति
चीर धरे जिन वीर के पीछे, सीता रूप में गयी लक्ष्मी

क्या दुर्लभ है उनको जग में, जिनके आगे चलें लक्ष्मण
मोह, शोक को त्यागो देवी !, कहती हूँ मैं सत्य वचन  

नवोदित चन्द्रमा समान तुम, हे कल्याणी ! अपने सुत को
करते हुए नमन देखोगी, अपने इन चरणों में उनको

राजभवन में हो प्रविष्ट, राजपद पर हो आसन्न
अश्रु बहाओगी हर्ष के, देख राम को तुम सम्पन्न

उनके लिए न शोक करो, अशुभ नहीं कोई उनमें
शीघ्र उन्हें लौटे देखोगी, साथ लक्ष्मण, सीता के

धैर्य बंधाओ इन लोगों को, क्यों स्वयं हो इतनी व्याकुल
श्रीराम सा पुत्र मिला है, उचित नहीं होना आकुल

जैसे वर्षाकाल के बादल, करते हैं जल की वृष्टि
वैसे ही आनन्द के अश्रु, उन्हें देख तुम बरसाओगी

शीघ्र स्पर्श करेंगे आकर, राम तुम्हारे चरणों को
नहलाओगी हर्ष अश्रु से, जैसे धारा पर्वत को

वाकपटु, निर्दोष सुन्दरी, इसी तरह आश्वासन देती
कौसल्या को समझाकर, देवी सुमित्रा चुप हो गयी

कौसल्या ने वचन सुने जब, शोक विलीन हुआ सारा
जैसे शरद ऋतु का बादल, शीघ्र छिन्न-भिन्न हो जाता


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में चौवालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ



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