Monday, October 5, 2015

सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिए उनके महल में जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

पंचदशः सर्गः


वेदों के पारंगत ब्राह्मण, राजपुरोहित रात बिताकर
राजा की प्रेरणा से ही, प्रातः आये राजद्वार पर

मंत्री, सेना के अधिकारी, बड़े-बड़े साहूकार भी
श्रीराम के अभिषेक हित, एकत्र हुये थे ख़ुशी-ख़ुशी

सूर्योदय होने पर दिन में, हुआ योग पुष्य नक्षत्र का
कर्क लग्न हुआ उपस्थित, जब श्रीराम के जन्म का

रख दी थी सारी सामग्री, जल से भरे कलश सोने के
भद्रपीठ, रथ, संगम का जल, की एकत्र थीं सब वस्तुएं

पावन सरवर, कूप, व नदियाँ, पूर्व दिशा को जो बहती थीं
निर्मल जल जिनमें रहता है, उत्तर, दक्षिण जो जाती थीं

उन सबका जल भी लाये थे, दूध, दही, घी, लावा भी था
कुश, पुष्प, आठ कन्याएं, गजराज, थी कमल की शोभा

श्रीराम हित पीतवर्ण का, उत्तम चंवर कांति युक्त था
चन्द्र समान श्वेत छत्र भी, परम प्रकाश दे शोभा पाता

श्वेत वृषभ व श्वेत अश्व थे, वाद्य सभी भांति के थे
स्तुति पाठ करने वाले, वंदी व मागध जन थे

देख द्वार पर न राजा को, कहने लगे, कहाँ हैं राजा ?
हम सब आये हैं द्वार पर, कौन उन्हें सूचना देगा

बातें करते थे जब वे सब, कहा तभी सुमन्त्र ने आकर
जाता हूँ राम को बुलाने, महाराज की आज्ञा पाकर

आप सभी पूजनीय राजा के, कुशल पूछता उनकी ओर से
सुख से होंगे आप सभी, कह ऐसा सुमन्त्र पुनः लौटे

सद खुला था उनके हित वह, सुमन्त्र राजभवन में गये
स्तुति की फिर राजवंश की, जाकर निकट शयन गृह के

चन्द्र, सूर्य, शिव कुबेर, वरुण, इंद्र दें विजय आपको
आया दिवस, गयी रात्रि, जग जाएँ, करें प्राप्त कर्म को

ब्राह्मण, सेना के अधिकारी, बड़े-बड़े साहूकार भी
आये हैं द्वार पर सारे, अभिलाषा लेकर दर्शन की

 राजा ने तब कहे वचन ये, श्रीराम को क्यों न बुलाया  
जगा हूँ मैं, नहीं सोया, पालन शीघ्र हो आज्ञा का

राजा के सुन वचन सुमन्त्र, राजभवन से बाहर आए
ध्वजा-पताकाओं से सज्जित, राजमार्ग पर वे आए

हर्ष और उल्लास में भरकर, आगे बढ़ते ही जाते थे
श्रीराम के अभिषेक की, बातें सुनते सब के मुंह से

कैलाश पर्वत की भांति, सुंदर भवन था श्रीराम का
बंद था फटक विशाल, छोटा सा ही द्वार खुला था

मणि और मूंगे जड़े थे, थीं प्रतिमाएं अग्रभाग में
श्वेत कांति से युक्त भवन, था जगमग मुक्तामणियों से    

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