Tuesday, October 27, 2015

श्रीराम का सीता से अनुमति ले लक्ष्मण के साथ रथ पर बैठकर गाजेबाजे के साथ मार्ग में स्त्री-पुरुषों की बातें सुनते हुए जाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

षोडशः सर्गः
सुमन्त्र का श्रीराम के महल में पहुँचकर महाराज का संदेश सुनाना और श्रीराम का सीता से अनुमति ले लक्ष्मण के साथ रथ पर बैठकर गाजेबाजे के साथ मार्ग में स्त्री-पुरुषों की बातें सुनते हुए जाना 

पूर्व दिशा में इंद्र देवता, दक्षिण में यमराज करें
रक्षा करें वरुण पश्चिम में, उत्तर में कुबेर करें

अनुमति सीता की लेकर तब, उत्सवकालिक कृत्य कर
श्रीराम निकले महल से, साथ सुमन्त्र सूत को लेकर

पर्वत गुफा से ज्यों सिंह निकले, वैसे ही बाहर आकर
लक्ष्मण को उपस्थित देखा, वहाँ खड़े थे हाथ जोड़कर

मध्यम कक्षा में मित्र थे, प्रार्थी भी मिलने आये थे
कर संतुष्ट सभी को तब वे, उत्तम रथ पर आरूढ़ हुए

मेघ समान गर्जना करता, विस्तृत, कांतिमय रथ वह
चकाचौंध पैदा कर देता, लोगों की आँखों में वह

उत्तम घोड़े जुड़े हुए थे, गज शावकों से पुष्ट थे
हरे रंग के अश्वों वाला, इंद्र का रथ है सुंदर जैसे

साथ लक्ष्मण भी बैठ गये, लिए विचित्र चंवर हाथ में
रक्षा करने लगे राम की, चंवर डुलाते वे पीछे से

फिर तो निकली भीड़ बड़ी, कोलाहल मचा भारी
पीछे-पीछे चलते अश्व, विशाल सैकड़ों हाथी भी

आगे शूरवीर चलते थे, चन्दन, अगरु से विभूषित
खड्ग, धनुष धारण किये, जो कवच से थे सज्जित

वाद्यों की ध्वनि, स्तुतिपाठ के, शब्द सुनाई देते थे  
गूंज रहे थे उस मार्ग में, सिंहनाद शूरवीरों के

ढेर के ढेर फूल बिखेरें, महलों से सुंदर वनिताएँ
भूतल पर खड़ी युवतियां, श्रेष्ठ वचन से स्तुति गाएं

माता को सुख देने वाले, होगी सफल यात्रा यह
राज्य लक्ष्मी प्राप्त करेंगे, पूर्ण हमें है यह निश्चय

सीता हैं सौभाग्यशालिनी, तप किया होगा भारी
श्रीराम को प्राप्त किया है, ज्यों चन्द्रमा संग रोहिणी

राजमार्ग में रथ पर बैठे, श्रीराम बातें सुनते थे
दूर-दूर से आये जन भी, वार्तालाप वहाँ करते थे

राम हमारे शासक होंगे, होगी पूर्ण कामना अपनी
चिरकाल तक बनें यह राजा, लाभ है जनता का भारी  

नहीं अप्रिय किसी का होगा, नहीं किसी को कोई दुःख
दशरथ की कृपा से राम, सम्पत्ति पाकर पायें सुख

हिनहिन करते अश्व, गज भी चिंघाड़ते थे मार्ग में
जय जय कार सुनाते वंदी, स्तुतिपाठ सूत करते थे

मागध विरुदावली बखानें, गुणगायक के तुमुल घोष थे
पूजित, वन्दित होते उनसे, कुबेर समान राम चलते थे

भरा हुआ था जो खचाखच, राजमार्ग देखा राम ने
हर चौराहे पर मार्ग के, जनसमूह कई एकत्र हो रहे

रत्नों से भरी दुकानें थीं, दोनों ओर पार्श्व भागों में
स्वच्छ अति उस राजमार्ग पर, विक्रय योग्य ढेर द्रव्यों के

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में सोलहवाँ सर्ग पूरा हुआ.






3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    वाल्मीकि जयंती की हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  2. अति सुंदर...
    रामायण का इतना सुंदर वर्नण आज के समय में महान कार्य है...
    सादर....

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  3. कविता जी व कुलदीप जी, स्वागत व आभार !

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