श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
पंचदशः सर्गः
सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिए उनके महल में जाना
सोने के फूलों के मध्य,
ज्यों पिरोई गई हों मणियाँ
चन्दन व अगर की गंध थी,
सुंदर सजी हुई मूर्तियाँ
कलरव करते सारस पक्षी, भव्य
इंद्र के भवन समान
मेरु पर्वत का शिखर ज्यों,
शोभित होता सुंदर धाम
जनपदवासी पहुंच गये थे,
उत्सव हेतु थे उत्कण्ठित
दीवारों में रत्न जड़े थे, भीड़
से होता था सुसज्जित
रथ में बैठ सुमन्त्र वहाँ
गये, हर्ष के कारण थे रोमांचित
लाँघ अनेकों ड्योढ़ियों को,
अंतः पुर तक हुए उपस्थित
हर्ष भरी बातें करते थे, वहाँ
खड़े जो सेवकगण थे
शत्रुन्जय विशाल गजराज,
जैसा नाम वैसे गुण थे
राजा के जो परम प्रिय थे,
मंत्री गण भी आये मिलने
किया प्रवेश सुमन्त्र ने
भीतर, एक ओर करके उन्हें
जैसे जाये मगर सागर में,
वैसे ही सुमन्त्र गये भीतर
पर्वत शिखर पर मेघ हो जैसे,
महल अत्यधिक था सुंदर
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि
निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में पन्द्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ.
जय श्री राम....
ReplyDeleteअति सुंदर....
ReplyDeleteस्वागत व बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजय सियाराम !
स्वागत व आभार कविता जी
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