श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
द्वाद्श सर्ग
महाराज दशरथ की चिंता,
विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न मांगने के लिए अनुरोध करना
रानी का कठोर वचन सुन,
चिंतित हुए बहुत राजा
एक मुहूर्त तक बैठकर, मन ही
मन संताप किया
क्या यह स्वप्न देखता हूँ
मैं, अथवा मोह हुआ मन में
आधि-व्याधि से चित्त मलिन
है, या आवेशित किया भूत ने
भ्रम का कारण नहीं पता था,
दुःख से मूर्छित हुए थे वे
होश जगा तो याद आया सब, पुनः
भर गये पीड़ा से वे
जैसे बाघिन को देखकर, मृग
को व्यथा प्राप्त है होती
कैकेयी को देख हृदय में,
व्याकुलता, पीड़ा भर गयी
शैया रहित खाली भूमि पर,
लम्बी साँस खींचते राजा
महाविषैला सर्प मंडल में, ज्यों
मन्त्रों से अवरुद्ध हुआ
रोष में भर, धिक्कार है !
कहकर, पुनः मूर्छित हुए नरेश
दुःख से लुप्त हुई चेतना,
बहुत देर में आया चेत
क्रोधपूर्वक बोले रानी से,
दुःख व तेज से दग्ध किया
दयाहीन, तू दुराचारिणी !,
कुलनाशिनी डाइन भी कहा
सगी माँ जो तुझे मानते,
श्रीराम ने क्या बिगाड़ा
सब स्नेह करते हैं जिससे,
क्यों अनिष्ट करती है उनका
निज विनाश हेतु ही शायद,
तुझको अपने घर में लाया
राजकन्या के रूप में नागिन,
ऐसा मैं था नहीं जानता
परित्याग कर सकता हूँ मैं,
अन्य रानियों व राज्य का
किस अपराध से राम को
त्यागूँ, जीव जगत उसे चाहे सारा
ज्येष्ठ पुत्र राम को देख,
परम प्रेम उमड़ता उर में
नष्ट चेतना हो जाती जब, नजर
नहीं आते हैं वे
सूर्य बिना जगत सम्भव है, पानी
बिन खेती हो सकती
किन्तु राम बिन इस तन में,
जीवन ज्योति नहीं रह सकती
नहीं लाभ यह वर माँग कर,
त्याग दे इस दुराग्रह को
मस्तक रखता हूँ पैरों पर,
त्याग दे इस क्रूर बात को
प्रथम वर स्वीकार्य मुझे
है, राज्याभिषेक हो भरत का
तू पहले स्वयं ही कहती थी, राम
है तेरा पुत्र बड़ा
ऊपर-ऊपर से ही कहती, या फिर
सेवा का था लोभ
दुखी है सुन अभिषेक राम का,
मुझे दिलाती है तू रोष
आवेशित हुई सूने घर में, परवश
ही ऐसा कहती है
कैसा भारी अन्याय यह,
बुद्धि विकृत तेरी हुई है
आज से पहले कभी भी तूने, ऐसा
आचरण नहीं किया
नहीं भरोसा होता मुझको, तू
कर सकती है क्या ऐसा
तेरे लिए तुल्य हैं दोनों, बहुत
बार कहा यह तूने
राम हेतु वनवास फिर भला, भाया
है तुझे कैसे
अति कठोर है हृदय तेरा, जो
तेरी सेवा करते हैं
उन्हीं राम को देश निकाला,
जो सुकुमार धर्मवान हैं
भरत को सेवा करते तेरी, नहीं
कभी देखा मैंने
राम से बढ़कर दूजा कौन,
तत्पर आज्ञा पालन में
सुंदर सरल भाषा में....
ReplyDeleteअति सुंदर...
स्वागत व आभार पूनम जी
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