Wednesday, August 26, 2015

राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

त्रयोदश सर्गः
राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय

भूमि पर पड़े थे राजा, अनुचित व अयोग्य दशा में
नृप ययाति के समान जो, देवलोक से भ्रष्ट हुए थे

नहीं मनोरथ सिद्ध हुआ, लोकलाज जिसने छोड़ी थी
वह कैकेयी पुनः बोली तब, ऐसी दशा देखकर उनकी

सत्यवादी व दृढ़प्रतिज्ञ हूँ, आप डींग मारा करते थे
मेरे इस वरदान को आप, हजम किन्तु करना चाहते

सुनकर राजा दो घड़ी तक, व्याकुल सी हालत में रहे
तत्पश्चात कुपित होकर, वे उत्तर उसे लगे यह देने

नीच ! अति शत्रु है मेरी, कारण है मेरी मृत्यु का
पुत्रहीन था पहले मैं, फिर श्रीराम को प्राप्त किया

कैसे उनका त्याग करूं मैं, सुख भोगने के योग्य जो
अति प्रिय हैं राम मुझे, वनवास का दुःख दूँ उनको ?

बिना दिए दुःख राम को यदि, जग से विदा हो गया होता
उस दशा में मृत्यु से भी, मुझे बड़ा ही सुख मिलता

ओ पाषाण हृदयी कैकेयी !, क्यों उनसे विछोह कराती
ऐसा करने से निश्चय ही, फैलेगी तेरी अपकीर्ति

इस प्रकार विलाप करते, व्याकुल हुआ चित्त राजा का
सूर्यदेव अस्ताचल को पहुंचे, और प्रदोषकाल आ पहुंचा

तीन पहर बीते रात्रि के, चन्द्रिका भी फैली हुई थी
किन्तु दुखी राजा दशरथ को, ज्योति या सुख दे न सकी

बूढ़े राजा उच्छ्वास ले, आकाश की ओर देखते
आर्त की भांति दुखपूर्ण, रात्रि से कहने लगे ये

हे कल्याणमयी रात्रि !, न लाना प्रभातकाल तुम
हाथ जोड़ता, दया करो, अथवा शीघ्र बीत जाओ तुम

संकट जिससे प्राप्त हुआ है, उसे देखना न चाहूँ
है निर्दयी क्रूर कैकेयी, जिससे अति पीड़ा पाऊं

ऐसा कहकर धर्म के ज्ञाता, राजा ने पुनः वचन कहा
कैकेयी को मना लें कैसे, हाथ जोड़ फिर यह सोचा

ओ कल्याणमयी देवी ! जो दीन तेरे आश्रित है
मरणासन्न, सदाचारी है, और विशेषतया राजा है

ऐसे उस राजा दशरथ पर, कृपा कर हे केकयनन्दिनी
राम के राज्याभिषेक की, भरी सभा में बात कही थी

बाले ! तू सहृदय बड़ी है, मुझ पर कर कृपा अपनी  
हो प्रसन्न, सुनयनी, देवी, तुझको यश की हो प्राप्ति

सुमुखी, सुलोचने, यह प्रस्ताव, सबको ही प्रिय होगा
पूर्ण कर तू इसको सुख से, भरत को भी हर्ष होगा

राजा का भाव शुद्ध था, आंसुओं से नेत्र लाल थे
दीन भाव से करुणा जनक, विचित्र विलाप करते थे

किन्तु निष्ठुर कैकेयी ने, आज्ञा का पालन न किया
नहीं हुई संतुष्ट किंचित वह, प्रतिकूल ही वचन कहा

राजा तब हुए मूर्छित, सुध-बुध खो भूमि पर गिरे
धीरे-धीरे रात बीत गयी, भयंकर उच्छ्वास लेते

प्रातःकाल उन्हें जगाने, मंगल गान व वाद्य बजे
राज शिरोमणि ने किन्तु वे, तत्काल ही बंद कराए



इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में तेरहवाँ सर्ग पूरा हुआ.

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