Tuesday, July 28, 2015

कैकेयी का श्रीराम के गुणों को बताकर उनके अभिषेक का समर्थन करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

अष्टम सर्गः

मंथरा का पुनः श्रीराम के राज्याभिषेक को कैकेयी के लिए अनिष्टकारी बताना, कैकेयी का श्रीराम के गुणों को बताकर उनके अभिषेक का समर्थन करना तत्पश्चात कुब्जा का पुनः श्रीराम को राज्य को भरत के लिए भयजनक बताकर कैकेयी को भड़काना

फेंक दिया उसका आभूषण, कैकेयी की निंदा करके
कोप व दुःख से होकर पीड़ित, कहे मंथरा ने शब्द ये

रानी ! तुम नादान बहुत हो, बेमौके हर्षित होती
शोक सिन्धु में डूबी हो, किन्तु बोध नहीं करती

दुःख से व्याकुल होती हूँ मैं, दशा तुम्हारी यह देख कर
शत्रु ही है पुत्र सौत का, मृत्यु सम सौतेली माँ हित

कौन सी बुद्धिमती हो हर्षित, सौत पुत्र के अभ्युदय में 
भरत, राम दोनों ही सक्षम, यह महान राज्य पाने में

श्रीराम को भय है भरत से, यही सोच मैं पीड़ित दुःख से
भयभीत ही कारण भय का, सबल बनेगा जब भविष्य में

लक्ष्मण, श्रीराम के अनुगत, राम भी उनसे रखते प्रीति
शत्रुघ्न हैं भरत के अनुगत, भरत भी राज्य के अधिकारी

समस्त शास्तों के ज्ञाता हैं, राजनीति के पंडित भी हैं
राम का क्रूर बर्ताव भरत से, सोच हृदय होता कम्पित है

कौशल्या सौभाग्यवती हैं, उनका पुत्र युवराज बन रहा
राज की विश्वास पात्र हैं, तुमको दासी पद मिलेगा

कौशल्या की दासी होगी, भरत राम के बनें गुलाम
सीता संग सखियों खुश हों, बहू तुम्हारी शोक को प्राप्त

बहकी-बहकी बातें सुनकर, कैकेयी ने कहे शब्द ये
श्रीराम गुणवान अति हैं, युवराज के योग्य अति वे

पिता की भांति करंगे पालन, भाइयों व भृत्यों का भी
उनके अभिषेक से आखिर, तू इतना क्यों है जलती

सौ वर्षों के बाद निश्चय ही, भरत को राज्य मिलेगा यह
व्यर्थ ही जलकर दुखी हो रही, अभ्युदय का प्राप्त समय

जैसे मेरे लिए भरत हैं, उससे बढकर राम मुझे  
कौशल्या से भी बढ़कर ही, सेवा मेरी वे करते  

श्रीराम को राज्य मिल रहा, मिला भरत को ही तू जान
श्रीराम भाइयों को निज, सदा जानते आप समान

कैकेयी की बात सुनी जब, दुःख मंथरा का बढ़ा था
लम्बी, गहरी साँस ले उसने, पुनः उसे समझाया था

अर्थ समझती हो अनर्थ को, नहीं ज्ञान है तुम्हें सत्य का
दुःख के महासिंधु में डूबी, जो पल-पल बढ़ता जाता

श्रीराम जब राजा होंगे, उनका पुत्र ही बनेगा राजा
भरत को राज्य नहीं मिलेगा, सुखों से वंचित भी होगा

हित की बात सुनाने आयी, किन्तु नहीं समझती हो  
उलटे सौत का अभ्युदय सुन, पुरस्कार मुझे देती हो

श्रीराम को राज्य मिला तो, भरत को देश निकाला देंगे
भय है इस बात का मुझको, परलोक भी पहुंचा सकते

मामा के घर भेज दिया है, तुमने उनको उम्र में छोटी
प्रेम निकटता से ही बढ़ता, देखा जाता स्थावरों में भी

शत्रुघ्न भी साथ चले गये, किया भरत ने जब अनुरोध
लक्ष्मण जैसे राम के प्रिय, प्रिय भरत के हैं शत्रुघ्न

घिरा कंटीले झाड़ों से जो, काटा नहीं जा सका वृक्ष वह
निकट थीं उसके वे झाड़ियाँ, बचा लिया उसे महान भय से

लक्ष्मण का अनिष्ट न होगा, किन्तु भरत नहीं बचेंगे
वन को गमन करें अब राम, हित तुम्हारा है इसमें

राज्य भरत को यदि मिलेगा, होगा तब कल्याण तुम्हारा
यदि राम के रहा अधीन, भरत कभी न सुख पायेगा

गज समूह पर करे आक्रमण, वन में सिंह सदा ही जैसे
राम करेंगे तिरस्कार जो, करो भरत की रक्षा उससे

पति प्रेम जब तुम्हें मिला था, किया अनादर जिसका तब
सौभाग्यशालिनी बनीं सौत वे, बैर का बदला लेंगी अब

जब श्रीराम इस भूमंडल का, राज्य अनुपम करेंगे प्राप्त
दीन-हीन सी पात्र पराभव, बनोगी पुत्र भरत के साथ

सोचो कोई उपाय ऐसा, भरत राज्य को प्राप्त करें
शत्रु समान राम साथ ही, वनवास को गमन करें

  इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में आठवाँ सर्ग पूरा हुआ.



3 comments:

  1. आप की लिखी ये रचना....
    रविवार 02/08/2015 को लिंक की जाएगी...
    http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....


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  2. आप की कलम आज के युग में रामायण जैसे महाकाव्य का प्रचार कर रही है। जो कि एक महान कार्य है।
    आज हम मर्यादाएं व संस्कार भूल रहे हैं, परिवारों का विघटन हो रहा है, हर तरफ भागदौड़ है और हर तरफ अराजकता फैली है। मैं सोचता हूं कि रामायण से अधिक आज कोई अन्य पथ प्रदर्शक नहीं हो सकता।

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  3. स्वागत व आभार कुलदीप जी

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