श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
तृतीयः सर्गः
राजा दशरथ का वसिष्ठ और
वामदेवजी को श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी करने के लिए कहना और उनका सेवकों को
तदनुरूप आदेश देना; राजा की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम को राज सभा में बुला
लाना और राजा का अपने पुत्र श्रीराम को हितकर राजनीति की बातें बताना
सभासदों ने कमलपुष्प सी,
अंजलियाँ लगायीं सिर से
किया समर्थन प्रस्ताव का, हर प्रकार से मिलकर सब
ने
पद्मान्जलि को स्वीकार कर,
राजा ने प्रिय वचन कहे
बड़ी ख़ुशी है मुझे जान यह,
राम शीघ्र युवराज बनें
अनुपम हुआ प्रभाव भी मेरा,
चैत्र मास भी सुंदर, पावन
शुभ कार्य की हो तैयारी,
खिले हुए हैं सब वन उपवन
राजा की यह बात सुनी तो,
हर्षित हुए सभी पुरवासी
कोलाहल छा गया सभा में,
शांत हुआ फिर बात कही
मुनि वसिष्ठ से पूछी नृप
ने, सांगोपांग अभिषेक की रीति
करें आज्ञा सेवक जन को,
शीघ्र ही हो तैयारी इसकी
महाराज का वचन सुना जब,
मुनिवर ने दिया आदेश
हाथ बांधकर खड़े थे सेवक,
सूची कही, दिया संदेश
सोना आदि रत्न, कलश संग,
पूजन की सभी सामग्री
श्वेत पुष्प की मालाएँ,
औषधियां भी सब प्रकार की
खील, शहद, घी, वस्त्र नये, अस्त्र,
शस्त्र, चतुरंगिणी सेना
उत्तम लक्षण वाला हाथी,
व्याघ्रचर्म भी एक समूचा
चमरी गाय के पूंछ की, बालों
से बने व्यजन दो
स्वर्ण मढ़े सींगों का सांड,
श्वेत छत्र, ध्वज, स्वर्ण कलश सौ
जो कुछ भी वांछनीय हो, उन
सबको एकत्र करो
प्रातःकाल महाराज की, अग्नि
शाला में पहुंचा दो
अंतः पुर व नगर द्वार सब,
चन्दन व माला से सजाओ
गंध करे आकर्षित जिनकी, ऐसे
धूप वहाँ सुलगा दो
दही, दूध, घी आदि से मिल,
उत्तम अन्न तैयार करो
एक लाख ब्राह्मणों के हित,
जो भोजन पर्याप्त हो
श्रेष्ठ ब्राह्मणों का आदर
कर, प्रातः उन्हें प्रदान करो
स्वस्ति वाचन हित भी उनके,
आसन का प्रबंध करो
फहरायें पताकाएं भी, हो
राजमार्गों पर छिडकाव
संगीतज्ञ, नर्तकियां भी,
ड्योढ़ी में हों विद्यमान
देव मन्दिरों,
चैत्यवृक्षों, पूज्य देवों को चौराहों के
पृथक-पृथक भक्ष्य-भोज्य, संग
दक्षिणा अर्पित करें
गोधाचर्म के पहन दस्ताने,
ले लंबी तलवार हाथ में
कमर कसे आयें बलवान, शूरवीर
योद्धा आंगन में
दे आदेश सेवकों को यह,
वामदेव व मुनि वसिष्ठ ने
पुरोहित द्वारा हों
संपादित, पूर्ण किये वे कर्म उन्होंने
हर्षित हो नृप से द्विज
बोले, सम्पन्न हुआ कार्य सभी
कहा सुमन्त्र से तब राजा
ने, बुला लाये राम को अभी
जो आज्ञा कह गये सुमन्त्र,
रथ पर ले आये राम को
रथियों में थे श्रेष्ठ अति,
बलशाली उन राजपुत्र को
राज भवन में बैठे राजा,
शोभित होते इंद्र समान
वन वासी संग करें उपासना,
चार दिशाओं के भूपाल
राम को आते देखा नृप ने,
गजराज सम जिनकी चाल
कान्तिमान था मुखड़ा जिनका,
प्रजा को करते थे निहाल
तृप्ति नहीं होती राजा को,
रहें निहारें एक दृष्टि से
रथ से उतरे राम जब चले, थे
सुमन्त्र भी उनके पीछे
राजमहल कैलाश शिखर सम,
उज्ज्वल व ऊंचा भी था
राम चढ़े संग सुमन्त्र के,
सादर उनको प्रणाम किया
राजा ने तब उन्हें देखकर,
हाथ पकड़ अंक लगाया
मणिजटित सुवर्ण से भूषित,
सिंहासन प्रदान किया
जैसे सूर्य उदयकाल में,
मेरुपर्वत करे प्रज्ज्वलित
उसी प्रकार सिंहासन को, निज
प्रभा से किया प्रकाशित
शरद काल का आकाश ज्यों,
शोभित होता है चन्द्र से
सभा भी वह शोभा पाती थी, हो
प्रकाशित श्रीराम से
लख दर्पण में निज
प्रतिबिम्ब, होता है संतुष्ट ज्यों मानव
दशरथ भी प्रसन्न हुए थे,
शोभाशाली प्रिय पुत्र देख कर
राजा ने तब उन्हें पुकारा,
कश्यप जैसे देवराज को
पुत्र बड़ी महारानी के तुम,
माता के अनुरूप ही हो
गुणों में मुझसे बढ़कर हो,
प्रिय पुत्र मेरे तुम राम
गुणों से प्रजा प्रिय बने हो, पुष्य नक्षत्र में
हो युवराज
हो गुणवान स्वभाव से ही
तुम, सबका निर्णय यही सदा है
स्नेहवश फिर भी कुछ कहता,
जिससे हित ही सधे तुम्हारा
जितेन्द्रिय बने रहो तुम, आश्रय
अधिक विनय का लो
काम, क्रोध से होने वाले,
दुर्व्यसनों का त्याग करो
परोक्ष और प्रत्यक्ष नीति
से, न्याय विचार में हो तत्पर
मंत्री, सेनापति सभी संग, प्रजा,
प्रकृति के हो हितकर
कोष्ठागार व शस्त्रागार
में, संग्रहित हों पर्याप्त वस्तुएं
मित्रों भी होंगे आनंदित तब,
अमि पा जैसे देव हुए थे
राजा की ये बातें सुनकर, तुरंत
राम के गये सुह्रद
माँ कौशल्या को जाकर यह,
कहा शुभ समाचार सुखद
श्रेष्ठ नारियों में
कौशल्या, सुह्रदों को दिया इनाम
रत्न, सुवर्ण, गौएँ बाँटी, सुन
कर यह प्रिय संवाद
किया प्रणाम पुनः राजा को, छवि
जिनकी अति अभिराम
प्रजाजनों से हो सम्मानित, रथ
पर बैठ भवन गये राम
आज्ञा लेकर तब राजा की, नगरवासी
भी लौट गये
वस्तु अभीष्ट मिले अति
शीघ्र, कहकर देव पूजने लगे
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि
निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में तीसरा सर्ग पूरा हुआ.
ण्डम्
अच्छी कविता
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