श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याककांड
षष्ठः सर्गः
सीता सहित श्रीराम का नियम
परायण होना, हर्ष में भरे पुरवासियों द्वारा नगर की सजावट, राजा के प्रति कृतज्ञता
प्रकट करना तथा अयोध्यापुरी में जनपदवासी मनुष्यों की भीड़ का एकत्र होना
श्रीराम जी तब सीता संग,
करें उपासना नारायण की
नमन किया हविष्य पात्र को,
अग्नि में फिर आहूति दी
प्रिय मनोरथ की सिद्धि का,
मन में फिर संकल्प लिया
भक्षण किया यज्ञ शेष का, चटाई
पर विश्राम किया
तीन पहर जब बीत गये, एक पहर
रात्रि शेष थी
सभामंडप को वे सजाएं,
सेवकों को आज्ञा दी
सूत, मागध, बंदीजन की, श्रवण
सुखद वाणी सुनकर
प्रातः कालिक संध्या की
फिर, जप किया ध्यान लगाकर
वस्त्र रेशमी धारण करके,
मधुसूदन को किया प्रणाम
स्वस्ति वाचन भी होता था, करते
थे जिसे ब्राह्मण
गम्भीर व मधुर घोष तब, फ़ैल
गया सारी नगरी में
हुए प्रसन्न अयोध्या वासी,
लगे वे पुरी सजाने में
पर्वत सम ऊँचे मन्दिर के,
बादल को छूते शिखर थे
ऊंची ध्वजा लगायीं उन संग,
वृक्षों, अट्टालिकाओं में
चौराहों, गलियों, सभाओं, भवनों
और दुकानों पर भी
फहरायीं उच्च पताकाएं, जनता
सुख मनाती थी
नटों, नर्तकों के समूह थे,
गायक सुख वाणी गाते थे
चौराहों पर और घरों में,
अभिषेक की चर्चा करते थे
राजमार्ग भी सजे हुए थे,
पुष्प बिछे, धूप जले थे
सडकों पर दोनों ओर ही, शाखा
युक्त दीप सजे थे
दशरथ की प्रशंसा करते,
झुण्ड के झुण्ड लोग जमा थे
श्रीराम के गुण गा गाकर,
जनपद वासी आ पहुंचे थे
जनरव बढ़ता ही जाता था, सागर
की गर्जना समान
इन्द्रपुरी सा नगर बना था,
पर्व के दिन सा बढ़ा महान
इस
प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छठा सर्ग
पूरा हुआ.
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