Friday, December 12, 2014

विश्वामित्र द्वारा शुनः शेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

द्विषष्टितमः सर्गः

विश्वामित्र द्वारा शुनः शेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या

महायशस्वी अम्बरीष तब, शुनः शेप को लाये साथ
दोपहरी की बेला थी तब, पुष्कर में पाया विश्राम

राजा थे विश्राम कर रहे, शुनः शेप जा मिला मुनि से
विश्वामित्र थे उसके मामा, व्याकुल था वह भूख-प्यास से

आतुर था वह दीन अति, चेहरे पर विषाद छाया था
मुनि शरण में गया विकल हो, निज दुःख वहाँ सुनाया था

माता-पिता, न बन्धु-बांधव, मेरी रक्षा आप करें
प्राप्त कराते इच्छित वस्तु, दीर्घायु प्रदान करें

हों कृतार्थ अम्बरीष भी, तप कर मैं भी जाऊं स्वर्ग
मुझ अनाथ के नाथ बनें, रक्षा करें हे विश्वामित्र !

शुनः शेप की बात सुनी जब, मुनि ने ढाढस उसे बंधाया
निज पुत्रों से तब यह बोले, तुमने मुझसे जीवन पाया

पारलौकिक हित के हेतु, पिता जन्म देते पुत्रों को
 समय आ गया उस पूर्ति का, शुभ की अभिलाषा रखते जो  

मुझसे चाहे अपनी रक्षा, मुनिकुमार का प्रिय करो
हो पुण्यात्मा, धर्म परायण, निज जीवन का दान करो

यज्ञ पशु बन अग्निदेव को, तृप्त करो, आज्ञा मानो
देव तृप्त, पूर्ण यज्ञ भी,  शुनः शेप सनाथ जानो

भर अभिमान व अवहेलना, बोले सुत मधुच्छन्द जैसे
अन्य के पुत्र की रक्षा हेतु, निज पुत्रों को त्यागें कैसे

जैसे भोजन हो अपावन, यदि कुत्ते का मांस पड़े
वैसे ही पर पुत्र की रक्षा, अकर्त्तव्य ही जान पड़े  

क्रोधित होकर कहा मुनि ने, धर्म रहित यह निन्दित बात
किया उल्लंघन भी आज्ञा का, देता हूँ मैं तुमको शाप

कुत्ते का मांस खाती जो, जन्मों तुम मुष्टिक जाति में
उन वसिष्ठ पुत्रों की भांति, काटो वर्ष सहस्त्र दुखों में

शाप दिया अपने पुत्रों को, फिर मुनि बोले शुनः शेप से
यज्ञ में जब बांधे जाओगे, कुश आदि पवित्र पाशों से

विष्णु-देव के यूप निकट, माला, चन्दन रक्तिम तन पर
 गाना इन दो गाथाओं को, अग्नि की स्तुति भी कर

शुनः शेप ने पूरे मन से, ग्रहण किया उन गाथाओं को
गया निकट राजा के, बोला, चलें शीघ्र अब हम दोनों

यज्ञ दीक्षा ले लें आप, यज्ञ शीघ्र सम्पन्न हो जाये
ऋषिकुमार का वचन सुना जब, तज प्रमाद राजा हर्षाये

गये यज्ञ शाला में राजा, शुनः शेप को यूप से बांधा
लाल वस्त्र पहनाये उसको, पशु लक्षण से युक्त किया

इंद्र, उपेन्द्र की, की स्तुति, बंधे हुए उस शुनः शेप ने
रहस्यभूत स्तुति को सुनकर, इंद्र देवता प्रसन्न हुए

दीर्घायु प्रदान की उसको, अम्बरीष ने भी फल पाया
इसके बाद मुनि कौशिक ने, सहस्त्र वर्ष तक की तपस्या


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बासठवाँ सर्ग पूरा हुआ.






4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

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  2. आपकी इन पोस्ट के माध्यम से ही शास्त्रों का अध्ययन हो जाता है अन्यथा सांसारिक व्यवस्तताओं में फंसे हुए तो इन्हें पढ़ने का मौका ही नहीं मिल पाता।

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  3. शांति जी, अंकुर जी तथा स्मार्ट इंडियन जी, स्वागत व आभार !

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