श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना
गुह को छोड़ गए फिर आगे, भारद्वाज मुनि के धाम
चित्रकूट पर्वत पर पहुँचे, मुनि की आज्ञा पाकर राम
देव और गन्धर्व के सम ही, लीला करते तीनों रहते
सुंदर एक कुटीर बनाकर, वन की शोभा में थे रमते
पुत्रशोक से पीड़ित राजा, उनका बस रटते थे नाम
स्वर्ग सिधारे उसी शोक में, मुख पर था बस केवल राम
मिला राज्य भरत को लेकिन, उसे नहीं थी राज्य कामना
वन की ओर किय प्रस्थान , लौटें राम, थी यही भावना
वहाँ पहुँच सद्भावी भरत ने, कहा सत्य पराक्रमी राम से
हे धर्मज्ञ ! आप राजा हों, करूं याचना दोनों कर से
परम उदार, महा यशस्वी, महाबली, प्रसन्न मुख राम
राज्य की इच्छा न करके, पित्राज्ञा का रखा मान
चिह्न रूप में दिये खडाऊँ, आग्रह करके उन्हें लौटाया
राज्य करें वे अवधपुरी का, बड़े प्रेम से उन्हें मनाया
चरण स्पर्श किये भरत ने, इच्छा रही अधूरी मन में
प्रतीक्षा बस राम की करते, रहने लगे वे नंदी ग्राम में
चरण स्पर्श किये भरत ने, इच्छा रही अधूरी मन में
ReplyDeleteप्रतीक्षा बस राम की करते, रहने लगे वे नंदी ग्राम में
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
aabhaar anita ji
ReplyDeleteआह ... कितना सहज लिखा है इस प्रसंग को ... आभार ...
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