श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से
श्रीरामचरित्र सुनाना
सुग्रीव से मेल कराया, हनुमान ने महा राम का
कहा सभी वृत्तांत उसे, विशेषतया सीता हरण का
पूरी बात सुनी राम की, सुग्रीव ने प्रेम जताया
अग्नि को साक्षी बनाकर, मित्रता का प्रण उठाया
वाली के सँग वैर हुआ है, स्नेहवश फिर कहा राम से
दुखी देख कर की प्रतिज्ञा, वाली के वध की राम ने
वाली के बल का वर्णन तब, सुग्रीव ने किया सशंक
राम के बल का ज्ञान नहीं था, नहीं हुआ था वह निशंक
दुन्दुभी की देह दिखलाई, जो विशाल थी पर्वत जैसी
राम जान लें, बली है वाली, उसकी यह मंशा थी ऐसी
महाबली, महाबाहु ने देखा, हँसकर अस्थि समूह को
मात्र पैर के अंगूठे से, फेंका दस योजन दूर को
एक बाण से बींध दिया फिर, सात ताल महावृक्षों को
सुग्रीव को विश्वास दिलाने, सँग पर्वत और रसातल को
महाकपि को हुआ भरोसा, मन ही मन प्रसन्न हुए वे
किषि्कन्धा की गुफा में गए फिर, सँग महाबाहु को लेके
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