श्रीसीतारामचंद्राभ्यां
नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्
सप्तषष्टितम: सर्गः
मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मंत्रियों का राजा के बिना
होनेवाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठ जी से किसी को राजा के बनाने के
लिए अनुरोध
अयोध्या वासियों की रात, रोते और कलपते बीती
अश्रुओं से कंठ पूरित थे, दुःख के कारण लंबी लगती
राज्य का प्रबंध जो करते, प्रभात हुआ वे ब्राह्मण आये
मार्कण्डेय, मौद्गल्य, वामदेव, कश्यप, गौतम भी आये
महायशस्वी जाबालि, कात्यायन, राज पुरोहित वसिष्ठ
राय सभी अपने देते थे, साथ बैठ मंत्रीगण वरिष्ठ
पुत्रशोक से होकर पीड़ित, राजा ने निज देह त्याग दी
अति शोक से रात्रि बीती यह, सौ वर्षों समान लगती थी
श्री रामवर के सहित लक्ष्मण, दोनों भाई वन में बसते
भरत, शत्रुघ्न ननिहाल हैं, राजमहल में केकय देश के
इक्ष्वाकुवंशी सुत में से, राजा किसी को चुनना होगा
बिना राजा के इस राज्य का, वरना पूर्ण नाश ही होगा
जहाँ कोई राजा न होता, मेघ वहाँ पर नहीं बरसते
उस जनपद में कृषि न होती, बीज भी नहीं बिखेरे जाते
पुत्र पिता के वश न रहते, स्त्रियाँ पति की बात नहीं माने
धन भी अपना न रह जाता, भय रहता है सदा हृदयों में
राजा बिना निवासी कोई, बाग़-बगीचा नहीं लगाता
धर्मशाला, मन्दिर बनते न, यज्ञों का आयोजन होता
महायज्ञ यदि हुए आरम्भ, ऋत्विजों को दक्षिणा कम मिलती
उत्सव, मेले नहीं हो पाते, राष्ट्र हित में सभा न होती
व्यापारियों को लाभ न होता, विवादों का समाधान भी
कथावाचक कथा नहीं कहते, भय लगता यात्रा से भी
स्वर्णिम आभूषण धारण कर, नहीं निकलती हैं कन्यायें
नहीं सुरक्षित धनी, द्वार खोल, कृषक, वैश्य भी न सो पायें
वनविहार हित नर-नारी भी, वाहन द्वारा नहीं निकलते
राजा बिना किसी राज्य में, हाथी सड़क पर नहीं घूमते
No comments:
Post a Comment