Monday, July 3, 2017

राजा दशरथ का कौसल्या से अपने द्वारा मुनिकुमार के मारे जाने का प्रसंग सुनाना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्


त्रिषष्टितम: सर्गः

राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनिकुमार के मारे जाने का प्रसंग सुनाना

दिनकर धरा के रस सुखाकर, कर संतप्त ग्रीष्म किरणों से
प्रेत जहाँ उस यमवर्ती, दक्षिण दिशा में संचरण करते

कामभावना बढ़ाने वाली, मतवाली वर्षा ऋतु आई
सजल मेघ सब ओर छा गये, गर्मी जल्दी शांत हो गयी

पाँखें भीग गयीं नभचर की, कठिनाई से वहाँ पहुँचते
जहाँ वृक्ष की शाखाओं के, अग्रभाग अति झूम रहे थे

गिरे हुए व झर-झर गिरते, जल से आच्छादित हो हाथी
लगता सागर हो प्रशांत या, भीगा हुआ सा पर्वत कोई

निर्मल होने पर भी झरने, आ धातुओं के सम्पर्क में
श्वेत, लाल, भस्मयुक्त हो, रगीं सर्पों की भांति बहते थे

वर्षा की सुहानी ऋतु में, ले धनुष बाण हो रथ पर सवार
सरयू के तट पर जा पहुँचा, मैं मतवाला खेलूँ शिकार

थीं नहीं इन्द्रियां निज वश में, सोचा यह, तब मारूँगा मैं 
 भैसा, हाथी, सिंह, या व्याघ्र, आवेंगे जब पानी पीने

अंधकार सब ओर छाया था, पानी की दी ध्वनि सुनाई
हाथी ज्यों पानी पीता हो, ऐसी ही वह जान पड़ी थी

दृष्टि नहीं देख पाती थी, किंतु सोचा यह हाथी होगा
तरकस से  इक तीर निकाला, शब्द लक्ष्य कर उसे चलाया

विषधर सर्प समान विषैला, जैसे ही बाण वह छोड़ा
पानी में गिरते प्राणी का, हाहाकार शब्द सुना था

उषाकाल की बेला थी वह, मानव वाणी पड़ी सुनाई
मुझ तापस को किसने मारा, लेने आया था मैं पानी

क़िसका क्या बिगाड़ा मैंने, नहीं किसी को पीड़ा देता
वल्कल धारी तापस हूँ मैं, किसको इस वध से लाभ हुआ

क्या अपराध किया था मैंने, व्यर्थ ही जो यह कृत्य किया
नहीं किंचित भी होगा लाभ, केवल अनर्थ ही प्राप्त किया

कोई नहीं भला समझेगा, इस हत्यारे को इस जग में
माँ-पिता लिए हूँ चिंतित, स्वयं की पीड़ा नहीं है मुझको

 कौन करेगा पालन-पोषण, कैसे वे निर्वाह करेंगे
 तीनों का ही वध कर डाला, हत्यारे ने एक बाण से


2 comments:

  1. अति सुंदर श्रद्धा सुमन । हार्दिक आभार ।

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  2. स्वागत व आभार अमृता जी !

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