Thursday, May 21, 2015

राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ने के लिए ललकारना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पञ्चसप्ततितमः सर्गः
राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ने के लिए ललकारना

दशरथ नंदन ! राम ! सुना है, अद्भुत है पराक्रम तुम्हारा
पड़ा है मेरे श्रवणों में भी, समाचार शिव धनुष भंग का

है अचिन्त्य, अनोखा भी है, तोड़ा जाना तुमसे उसका
उतम धनुष अति भयंकर, लाया हूँ मैं एक दूसरा  

इसे खींच कर बाण चढ़ाओ, अपना पराक्रम दिखलाओ
द्वंद्व युद्ध फिर योग्य तुम्हारे, इसे देख मैं दूंगा तुमको

वचन सुना जब परशुराम का, राजा दशरथ दुखी हो गये
 अभय दान राम को दे दें,  दीन भाव से उनसे बोले  

भृगुवंशी ब्राह्मण के कुल में, जन्मे आप तपस्वी, ज्ञानी
रोष क्षत्रियों पर प्रकटा था, शांत हुआ, प्रतिज्ञा भी की

कहा इंद्र से स्वयं आपने, त्याग कर दिया है शस्त्रों का
कश्यप जी को भूमि दान कर, व्रत लिया आपने धर्म का

है महेंद्र पर्वत पर आश्रम, आप यहाँ कैसे आये हैं
 है राम पर रोष आपका, हम सब इससे अकुलाये हैं

राजा दशरथ कहते रह गये, परशुराम ने बात न सुनी
उनकी अवहेलना करके, राम से ही यह बात कही

रघुनन्दन ! ये दो धनुष ही, श्रेष्ठ और दिव्य थे जग में
विश्वकर्मा ने इन्हें बनाया, प्रबल और बड़े ही दृढ़ थे

त्रिपुरासुर से युद्ध के लिए, देवों ने शिव को दिया था
जिससे त्रिपुर का नाश हुआ, वही तोड़ तुमने डाला

दूजा धनुष हाथ में मेरे, दिया था विष्णु को देवों ने
यही वह वैष्णव धनुष है, शत्रु नगर पर विजय पा सके

शिव, विष्णु के बलाबल की, ली परीक्षा जब देवों ने
कौन अधिक बलशाली है, पूछा था यह ब्रहमाजी से

जान देवताओं की इच्छा, दोनों में विरोध जगाया
युद्ध हुआ तब शिव-विष्णु में, बड़ा भयंकरकारी था

विष्णु ने हुन्कार मात्र से, शिव धनुष को शिथिल किया
तब देवों ने आकर उनसे, शांति का अनुरोध किया

शिव के धनुष को शिथिल देख, विष्णु को श्रेष्ठ माना
कुपित हुए रूद्र ने उसको, देवरात को सौंप दिया

विष्णु ने भृगु वंशी मुनि को, दिया धरोहर रूप धनुष
फिर ऋचीक ने जमदग्नि को, सौंप दिया यह दिव्य धनुष

अस्त्र-शस्त्र का त्याग किया, पिता जमदग्नि तप करते थे
हत कर डाला था उनको, उसी समय कृतवीर्य कुमार ने

पिता के इस वध को सुनकर, मैंने फिर प्रतिशोध लिया
बार-बार उत्पन्न हुए जो, क्षत्रियों का संहार किया

पृथ्वी पर अधिकार किया जब, यज्ञ किया, दी भूमि दान
तप करके बली हुआ फिर, सुन धनु भंग किया प्रस्थान

अब तुम इसको हाथ में लो, बाण चढाओ ऐसा इस पर
द्वंद्व युद्ध का अवसर दूंगा, यदि ऐसा कर पाए तुम


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ.


No comments:

Post a Comment