Thursday, May 7, 2015

राजा जनक का अपने कुल का परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मण के लिए क्रमशः सीता और उर्मिला को देने की प्रतिज्ञा करना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकसप्ततितमः सर्गः

राजा जनक का अपने कुल का परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मण के लिए क्रमशः सीता और उर्मिला को देने की प्रतिज्ञा करना

सुन परिचय वसिष्ठ मुनि से, कहा जनक ने हो विनीत तब
हम भी देंगे कुल का परिचय, कृपा करें सुनने की अब

आवश्यक है परिचय देना, कन्यादान से पहले कुल का
हर कुलीन पुरुष के हेतु, नियम यही है तय धर्म का

पूर्वकाल में निमी नामके, राजा एक हुआ करते थे
तीनों लोकों में विख्यात, श्रेष्ठ अति वे बलशाली थे

मिथि नामक इक पुत्र हुआ, जनक उन्हीं के घर जन्मे
पहले जनक यही राजा थे, उदावसु जिनके सुत थे

नन्दिवर्धन उदावसु से, उनका पुत्र सुकेतु था
अति बलवान धर्मात्मा, देवरात पुत्र पाया था

वृहद्रथ, देवरात का पुत्र, महावीर उनके घर जन्मे
धैर्यवान व अति पराक्रमी, सुधृति उपजे उनसे

धृष्टकेतु उनसे जन्मे थे, जिनके पुत्र हर्यश्व थे
मरु उनके, प्रतीन्धक मरु से, कीर्तिरथ हुए उनसे

कीर्तिरथ के पुत्र देवमीढ़, जिनसे बिंबुध थे जन्मे
महीध्रक पुत्र बिंबुध के, उनसे कीर्तिराज हुए

महारोमा जिनके वंशज थे, जन्म दिया स्वर्णरोमा को
ह्रस्व रोमा जिनसे उपजे थे, पाया जिनने दो पुत्रों को

बड़ा पुत्र हूँ मैं ही उनका, छोटा भाई है कुशध्वज
पिता ने सौंपा राज्य मुझी को, गये स्वयं वन करने तप

स्वर्गवासी हुए पिता जब, भाई को अति स्नेह दिया
शासन मैंने इस राज्य का धर्म सहित है सदा किया

सांकाश्य से आ सुन्ध्वा ने, मिथिला नगरी को घेरा
माँगा शिव धनु व सीता भी, उसने निज दूत भेजा

युद्द हुआ घोर उसके संग, मारा गया सुन्धवा राजा
सांकाश्य राज्य पर मैंने, कुशध्वज को अभिषिक्त किया

महामुने, अति प्रसन्न हो, दो बहुएँ प्रदान करता हूँ   
राम हेतु सीता को देता, लक्ष्मण हित उर्मिला दूँ

तीन बार मैं दोहराता हूँ, संशय नहीं है इसमें कोई
परम हर्ष में भरकर अपनी, कन्याएं मैंने हैं दीं

दशरथ से फिर कहा नरेश ने, गोदान कराएँ वे पुत्रों से
मंगल होगा जिससे इनका, नांदीमुख श्राद्ध भी इनसे

इसके बाद विवाह सम्पन्न हो, मघा नक्षत्र तिथि है आज  
उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र में, तीजे दिन कराएँ शुभ काज

दान कराएँ अभ्युदय हित, भावी में सुख देने वाला
गो, भूमि, सुवर्ण, तिल आदि, होगा हित दोनों पुत्रों का

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में इकहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ

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