श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
चतुःपञ्चाशः सर्गः
विश्वामित्र का वसिष्ठ जी की गौ को बलपूर्वक ले जाना, गौ का दुखी होकर
वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञा से शक, यवन, पहल्व आदि वीरों की सृष्टि
करके उनके द्वारा विश्वामित्र जी की सेना का संहार करना
कामधेनु गौ को देने को, मुनि न जब तैयार हुए
तब राजा उस चितकबरी को, बल पूर्वक लिए चले
सुनो राम ! शोकाकुल गाय, मन ही मन हुई अति दुखी
त्याग दिया क्या मुझे मुनि ने, मन में यह चिन्तना की
क्या अपराध किया है मैंने, उन महान पवित्र मुनि का
भक्त जानकर भी जो अपना, त्याग कर दिया है मेरा
यही सोचकर दीर्घ श्वास ले, झटक सैनिकों को राजा के
बड़े वेग से जा पहुँची वह, पास महातेजस्वी मुनि के
वायु के समान वह शबला, मुनि चरणों के पास गयी
मेघ समान गम्भीर स्वर से, रोती हुई मुनि से बोली
त्याग दिया क्या मुझे आपने, सैनिक मुझको लिए जा रहे
थी संतप्त शोक से जो, मुनि उस बहन समान से बोले
नहीं त्याग करता मैं तेरा, नहीं कोई अपराध तुम्हारा
निज बल से मतवाले होकर, लिए जा रहे हैं यह राजा
इनसा बलशाली मैं नहीं हूँ, यह राजा के पद पर आसीन
हैं क्षत्रिय, पालक पृथ्वी के, सेना से भी अति बलवान
हाथी, घोड़े, रथ युक्त है, अक्षौहिणी सेना बल शाली
फहराते हैं ध्वज हौदों पर, शबला सुन यह तब बोली
क्षत्रिय का बल नहीं है बल, ब्राह्मण हैं अधिक बलवान
दिव्य अति है बल ब्राह्मण का, अप्रमेय, दुर्धर्ष, महान
ब्रह्म बल से पुष्ट हुई मैं, यह दुरात्मा राजा बलवान
आज्ञा दें आप केवल यह, चूर्ण करूं इसका अभिमान
कामधेनु के ऐसा कहने पर, मुनि वसिष्ठ ने आज्ञा दी
नष्ट करे शत्रु सेना को, सृष्टि करो सैनिकों की
सुनकर गौ ने किया वही तब, इक हुंकार भरी जैसे
वीर सैकड़ों तब उपजे थे, तुरंत वहाँ पहल्व जाति के
करने लगे नाश सेना का, बड़ा विनाश ढाते थे सैनिक
आँख फाड़ कर बड़े रोष से, विश्वामित्र बस देख रहे थे
छोटे-बड़े कई अस्त्रों का, तब किया प्रयोग राजा ने
पह्ल्वों का संहार कर डाला, तत्क्ष्ण ही विश्वामित्र ने
शबला ने महा पराक्रमी, सैनिकों को फिर उपजाया
यवन मिश्रित शक जाति के, वीरों से जग भर आया
केसर सम, सुवर्ण मयी थी, तन की कांति उन वीरों की
तीखे खड्ग, पट्टिश लिए थे, आभा थी प्रज्वलित अग्नि सी
भस्म करना आरम्भ किया तब, विश्वामित्र की उस सेना को
अस्त्र छोड़े राजा ने उन पर, व्याकुल किया था शक सेना को
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौवनवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
bahut sundar anuvadan...prashanshaniya!!!
ReplyDeleteस्वागत व आभार अभिषेक जी
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