श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
द्विपंचाशः सर्गः
महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की
सृष्टि करने का आदेश
जपवान वसिष्ठ मुनि का, विश्वामित्र ने पाया दर्शन
विनयपूर्वक झुके चरण में, कर प्रणाम हुए प्रसन्न
स्वागत कर दिया एक आसन, फल-फूल का भी उपहार
विधिपूर्वक अतिथि राजा का, किया मुनि ने आदर सत्कार
विश्वामित्र ने उनके तप का, अग्निहोत्र व शिष्य वर्ग का
लता-वृक्ष आदि का उनसे, पूछा समाचार सबका
महातपस्वी वसिष्ठ मुनि ने, राजा की कुशलता पूछी
क्या प्रसन्न रहती है प्रजा, अपनाते राजोचित नीति ?
भृत्यों का पोषण करते हो, क्या मानते हैं वे आज्ञा ?
विजय पा चुके शत्रु पर भी, सेना, कोष, परिवार है कैसा
‘सभी कुशल है’ कहा नरेश ने, दोनों का चला संवाद
प्रेम हुआ दोनों में मिलकर, बढ़ता रहा वार्तालाप
महाबली नृप ! कहा मुनि ने, है असीम प्रभाव तुम्हारा
सेना सहित तुम स्वीकारो, यथायोग्य सत्कार हमारा
अतिथियों में तुम श्रेष्ठ हो, कर्त्तव्य यही है मेरा
ग्रहण करो इस आदर को, विनीत अनुरोध है मेरा
विश्वामित्र ने कहा मुनि से, वचनों से सत्कार हो गया
दर्शन मिला आपका मुझको, आदर फल-फूल से हुआ
आप पूजनीय हैं मेरे पर, भलीभांति की आपने पूजा
मैत्रीपूर्ण दृष्टि से देखें, नमस्कार कर अब हूँ जाता
आग्रह बार-बार किया जब, कहा मुनि को तब राजा ने
है स्वीकार अनुरोध आपका, मुनिवर ! आप पूज्य मेरे
प्रसन्न हुए मुनि अति तब, चितकबरी धेनु को बुलाया
धुल गये थे कल्मष जिसके, कामधेनु थी वह गैया
उसे बुलाकर कहा मुनि ने, शबले ! मेरी बात सुनो
सेना सहित इन राजर्षि का, सत्कार शीघ्र यथोचित हो
जो-जो भी जिसको भाता हो, षडरस भोजन प्रस्तुत कर दो
कामधेनु मेरे कहने से, द्रव्यों की वर्षा कर दो
सरस पदार्थ, अन्न, पान भी, लेह्य, चोष्य, भांति भांति के
ढेर लगा दो सब चीजों के, हो न विलम्ब, शीघ्रता हो
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बावनवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
सुदर। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteकुलदीप जी व प्रेम जी, स्वागत व आभार !
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