श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
पंचपञ्चाशः सर्गः
अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके
महादेवजी से दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठ के आश्रम पर प्रयोग करना एवं वसिष्ठ
जी का ब्रह्म दंड लेकर उनके सामने खड़ा होना
विश्वामित्र के अस्त्रों से जब, घायल होकर हुए वे व्याकुल
और सैनिकों की सृष्टि कर, कहा धेनु को लगा योगबल
फिर हुंकार किया गाय ने, जिससे उपजे थे कम्बोज
सूर्य समान तेजस्वी थे वे, बर्बर हुए थनों से उत्पन्न
योनि देश से यवन हुए थे, शकृदेश से शक आये
रोमकूप से उपजे म्लेच्छ, हारीत और किराट हुए
रघुनन्दन उन सब वीरों ने, तब भारी प्रहार किया
पैदल, हाथी, घोड़े, रथ संग, सेना का संहार किया
अति कुपित हो सौ पुत्र तब, टूट पड़े वसिष्ठ मुनि पर
हुंकार मात्र से ही मुनि ने, भस्म किया उन्हें जलाकर
दो ही पल में भस्म हुए वे, नष्ट हुए सेना के संग
लज्जित हुए विश्वामित्र तब, शांत हुआ तब उनका वेग
दंत विहीन सर्प समान, राहु ग्रस्त सूर्य की भांति
हुए तत्काल निस्तेज वे, पंख कटे पक्षी की भांति
नष्ट हुआ था बल सारा, उत्साह भी नष्ट हुआ
खिन्न हुए थे मन ही मन वे, एक पुत्र ही शेष रहा
राजा के पद पर बैठा कर, आज्ञा दी उसको शासन की
गये हिमालय तप करने वे, पूजा करते महादेव की
प्रकट हुए भगवान वृषभ ध्वज, जब बीता था कुछ काल
पूछ तप करने का कारण, थे उत्सुक वर देने तत्काल
कर प्रणाम कहा मुनि ने, यदि आप संतुष्ट हैं मुझसे
अंग, उपांग, व सहित उपनिषद, धनुर्वेद मुझे प्रदान करें
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 18/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
आभार !
Deleteआप का कार्य सार्थक हैं, रामायण हमारा सब से पावन ग्रंथ है। ये कहानियां हम तक शायद न पहुंच पाती अगर आप ये रचना न करते।
ReplyDeleteसादर।
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteकुलदीप जी व सुमन जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteलाजवाब
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