श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
एकोनत्रिंशः सर्गः
विश्वामित्र का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्व वृत्तांत बताना और उन दोनों
भाईयों के साथ अपने आश्रम पर पहुंचकर पूजित होना
वचन सुना जब श्रीराम का, अपरिमित बलवान जो थे
उत्तर देना किया प्रारम्भ, महातेजस्वी विश्वामित्र ने
देववंदित प्रभु विष्णु ने, यहाँ किया तप पूर्वकाल में
‘वामन’ का अवतार लिया जब, रहते थे इस आश्रम में
यहीं तपस्या में वे रत थे, यहीं प्राप्त की थी सिद्धि
सिद्धाश्रम कहलाया तब ये, युग-युग तक तपस्या की
हुआ पराभव तब देवों का, बलि राजा विख्यात हुआ
इंद्र, मरुद्गण हुए पराजित, असुरराज ने यज्ञ किया
अग्नि आदि सब देवों ने, मिल विष्णु से ये वचन कहे
यज्ञ पूर्ण हो बलि का, इससे पूर्व कार्य सिद्ध हम कर लें
हर याचक की इच्छित वस्तु, यथारूप बलि अर्पित करते
वामन वेश बना आप भी, देवताओं का हित साधें
इसी समय अदिति के साथ, कश्यप मुनि वहाँ पधारे
दीर्घ काल का व्रत पूर्ण कर, अग्निसम वे दीप्त हुए
वरदायक भगवान विष्णु की, सुंदर स्तुति की मुनि ने
तप राशि ! हे ज्ञान स्वरूप !, तप से आपके दर्शन मिलते
सारा जगत आपमें स्थित, हे अनादि ! मैं शरणागत हूँ
देश, कल से परे आप हैं, नहीं समर्थ जानने में हूँ
कश्यप जी निर्दोष हो चुके, श्रीहरि हुए प्रसन्न देख के
हो कल्याण तुम्हारा मुनिवर, हो योग्य तुम वर पाने के
वचन सुना जब प्रभु का सुंदर, मरीचि नन्दन कश्यप बोले
उत्तम व्रत पालक हे ईश्वर, एक याचना मेरे मन में
अदिति सहित देवगण भी यह, वर आपसे यही मांगते
हे नारायण ! पुत्र रूप में, आप हमारे घर आयें
सुन्दर कथा माला
ReplyDeleteस्वागत व आभार वीरू भाई
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