श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टाविंशः सर्गः
विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि
बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का एक आश्रम एवं यज्ञ
स्थान के विषय में मुनि से प्रश्न
ग्रहण किया जब अस्त्रों को, मुख राम का खिला ख़ुशी से
देवों से भी दुर्जय हूँ अब, चलते-चलते कहा मुनि से
कृपा आपकी मुझ पर है यह, ककुत्स्थ कुल तिलक राम बोले
महातपस्वी, धैर्यवान हे !, कहें विधि संहार की इनसे
उत्तम व्रतधारी मुनिवर ने, दिया उपदेश ‘संहार विधि’ का
अस्त्र विद्या के योग्य पात्र तुम, रघुवर ! हो कल्याण तुम्हारा
ग्रहण करो और अस्त्रों को, प्रजापति कृशाश्व के पुत्र हैं
इच्छाधारी, परम तेजस्वी, आगे इनके नाम कहे हैं
सत्यवान, सत्यकीर्ति, धृष्ट, रभस, प्रान्गमुख, प्रतिहारतर
लक्ष्य, अलक्ष्य, दृढ़नाभ, सुनाभ, द्शशीर्ष, दशाक्ष, शतवक्त्र
अवांग मुख, पद्मनाभ, महानाभ स्वनाभ, शकुन
हैं अद्भुत अस्त्र सभी ये, सर्पनाथ, पन्थान, वरुण
दुन्दुनाभ, ज्योतिष, निरस्य, विमल, दैत्य्नाश्क योगन्धर
शुचिबाहु, निष्कलि, विरुच, धृतिमाली, सौमनस, रुचिर
सर्चिमाली, पिव्य, विधूत, विनिन्द्र, मकर, परवीर, रति
धन, धान्य, कामरूप, मोह, आवरण, जुम्भ्क, कामरूचि
श्री राम ने पुलकित मन से, ग्रहण किया सभी अस्त्रों को
दिव्य तेज से उद्भासित थे, मूर्तिमान, सुखकारी थे जो
कुछ थे अंगारों से प्रज्ज्वलित, कितने ही धूम सम काले
सूर्य, चन्द्रमा के समान कुछ, सब सम्मुख थे श्री राम के
अंजलि बांधे मधुर स्वरों में, श्रीराम से वे ये बोले
पुरुष सिंह हम दास आपके, दे आज्ञा हम क्या सेवा दें
मनभावन सन्देश परक भाव गीत।संस्कृति वंदन सा। सांस्कृतिक थाती सा।
ReplyDeleteहृदय में अपनी संस्कृति व धार्मिक्ता जगाती आपकी सुन्दर रचना , आदरणीय
ReplyDeleteआप के पाठन योग्य सूत्र --: प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini
नम्र निवेदन ₡ हो सके तो एकबार अवश्य पधारे , धन्यवाद
sundar
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ReplyDeleteग्रहण किया जब अस्त्रों को, मुख राम का खिला ख़ुशी से
देवों से भी दुर्जय हूँ अब, चलते-चलते कहा मुनि से
सुन्दर कथात्मक गीत
लाजवाब ! बहुत सुंदर रचना
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