श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टाविंशः सर्गः
विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि
बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का एक आश्रम एवं यज्ञ
स्थान के विषय में मुनि से प्रश्न
रघुकुल नन्दन राम ने कहा, अभी आप जाएँ निज धाम
किन्तु जरूरत पड़े जिस समय, मनोस्थित हो जाएँ आप
तत्पश्चात परिक्रमा करके, अस्त्रों ने किया प्रस्थान
श्रीराम ने पूछा मुनि से, पाया जब अस्त्रों का ज्ञान
सम्मुख जो पर्वत दिखता है, सघन वृक्ष से ढका हुआ
मन में है उत्कंठा जागी, पशुओं से जो भरा हुआ
पक्षी गीत वहाँ गाते हैं, मनहर है यह सुंदर वन
मानो कठिन ताटका वन से, दूर निकल आए अब हम
कौन यहाँ रहता है प्रभुवर, यज्ञ हो रहा कहाँ आपका
कहाँ मुझे रक्षा करनी है, उस आश्रम का देश कौन सा
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अट्ठाईसवां
सर्ग पूरा हुआ.
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