श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन,
श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण,
राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार
पुरोहित व बांधवों के साथ, राजा एक दिन बैठे थे
पुत्रों के विवाह विषय में, मंत्रियों से चर्चा करते थे
तभी पधारे विश्वामित्र, महामुनि, जो तेजस्वी थे
दिया संदेश द्वारपालों से, राजा से मिलना चाहते थे
कुशिक वंशी गाधिपुत्र को, देख द्वारपाल भी घबराए
तत्क्षण दौड़े वे दरबार, राजा को बताने आए
साथ पुरोहित को लेकर, सावधान हुए तब राजा
बड़े हर्ष से की अगवानी, जैसे इंद्र करें ब्रह्मा का
विश्वामित्र थे बड़े तपस्वी, प्रज्वलित हुए तेज से अपने
अर्ध्य निवेदन उन्हें किया, दर्शन से राजा हर्षित थे
किया महर्षि ने स्वीकार, शास्त्रीय विधि से अर्ध्य
नगर, खजाने, बन्धु, मित्रों का, कुशल पूछ किया धन्य
शत्रु नतमस्तक तो हैं न ?, निकट राज्य
की जो सीमा के
सम्पन्न होते हैं कर्म सभी ?, यज्ञ, पूजा, अतिथि सेवा के
पूछा कुशल अन्य ऋषियों का, इसके बाद मिले वशिष्ठ से
प्रसन्नचित हो बैठे आसन पर, पूजित होकर तब राजा से
मरणधर्मा को मिले ज्यों अमृत, निर्जल स्थान में जल बरसे
पुत्र मिले सन्तान हीन को, हर्ष उदय हो ज्यों उत्सव से
खोयी हुई निधि मिल जाये, है ऐसा ही आगमन आपका
ऐसा मेरा मत है मुनिवर, अहो भाग्य ! है कैसा मेरा
परम उदार पुलकित राजा ने, महामुनि की कही प्रशंसा
महामुने ! स्वागत है आपका, कहें आप अब निज कामना
उत्तम पात्र आप हैं मुनिवर, हर सेवा मुझसे लेने के
जन्म सफल हुआ है मेरा, जीवन भी हुआ है धन्य
लायी है सुंदर प्रभात, मेरी बीती हुई रात यह
दर्शन मिले आपके मुझको, अद्भुत और पवित्र है यह
तप कर हुए ब्रह्मर्षि, राजर्षि थे पूर्वकाल में
पूजनीय हैं मुनिवर आप, दोनों ही रूपों में
तीर्थ हुआ है घर मेरा, पुण्य क्षेत्रों से हैं आए
क्या उद्देश्य है शुभागमन का, कहें आप क्या चाहते
उत्तम व्रत का पालन करते, कृपा करके आप कहें
कार्य के पूरा होने में, संशय को न मन में रखें
जो भी आज्ञा देंगे आप, पालन करूँगा मैं उसका
अतिथि देव समान हैं आप, अभ्युदय ही होगा मेरा
विनययुक्त वचन सुनकर ये, थे सुखदायी उर, कानों को
हर्षित हुए महर्षि सुनकर, थे यशस्वी, गुणी अति जो
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अठाहरवाँ सर्ग
पूरा हुआ.
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