श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन,
श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण,
राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार
यज्ञ समाप्त हुआ दशरथ का, निज भाग ले, देव लौट गए
पूर्ण हुआ दीक्षा का नियम, राजा पुरी में प्रविष्ट हुए
हो सम्मानित चले गए, राजा भिन्न-भिन्न देशों के
ऋषियों को प्रणाम कर रहे, हर्षमय थे सैनिक उनके
श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आगे कर, परिजन संग आए राजा
लौट गए निज स्थान को, ऋष्यश्रंग भी संग शांता
छह ऋतुएं जब बीत गयीं, यज्ञ हुआ था सम्पन्न जबसे
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की, तिथि नवमी, कर्क लग्न में
पुनर्वसु नक्षत्र था जब, पांचों ग्रह थे उच्च स्थान में
संग चन्द्रमा के बृहस्पति, लग्न में विराजमान थे
विष्णुरूप हविष्य से उत्पन्न, खीर के अर्ध भाग से उपजे
कौशल्या के पुत्र राम, इक्ष्वाकु कुल का आनंद थे
नेत्रों में लालिमा कुछ-कुछ, रक्तिम ओष्ठ, विशाल भुजाएं
स्वर दुन्दुभि के सम गम्भीर, दिव्य लक्षणों से भाएँ
कौशल्या की हुई शोभा, उस अमित तेजस्वी पुत्र से
जैसे देवमाता अदिति, शोभित हुईं थीं वज्रपाणि से
उसके बाद भरत जन्मे थे, चतुर्थांश से न्यून भाग से
सत्य पराक्रमी, कैकेयी पुत्र, सदगुणों से सम्पन्न थे
ReplyDeleteसुन्दर काव्य वृत्तांत .
भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
सुन्दर वर्णन ...
ReplyDeleteसादर आभार !
IT'S WONDERFUL DESCRIPTION.
ReplyDeleteJAI SHRI KRISHNA.
सुन्दर प्रस्तुति . खुबसूरत .बहुत खूब,
ReplyDeleteवीरू भाई, दिनेश जी, शिव नाथ जी, कृष्णन जी, व मदन मोहन जी, आप सभी का स्वागत व आभार!
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