श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
अष्टादशः सर्गः
राजाओं तथा ऋष्यश्रंग को विदा करके राजा दशरथ का रानियों सहित पुरी में आगमन,
श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण,
राजाके दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार
बीत गए जब दिन ग्यारह, शिशुओं का किया नामकरण
नाम रखे गुरु वशिष्ठ ने, राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न
राजा ने भोजन करवाया, जनपद व पुरवासियों को
बहुत से उज्ज्वल रत्न दिए, दान में कई ब्राह्मणों को
जातकर्म संस्कार करवाए, समय-समय पर मुनि वशिष्ठ ने
कीर्ति ध्वजा कुल की फहराते, श्रीराम थे ज्येष्ठ सभी में
ब्रह्मा सम वे सर्वप्रिय थे, पिता का हर्ष बढ़ाने वाले
वेदों के विद्वान, थे सभी, लोक हित के कर्मों वाले
ज्ञानवान, सद्गुण सम्पन्न सब, राम सभी में तेजस्वी
निष्कलंक चन्द्रमा के सम, सेवा करते थे पिता की
गज स्कंध पर, अश्व पीठ पर, थे अति कुशल बैठने में
धनुर्वेद के अभ्यासी थे, सम्मानित भी रथ चालन में
लक्ष्मी की वृद्धि जो करते, लक्ष्मण, थे राम अनुरागी
सदा राम प्रिय ही करते, बचपन से, तन से सेवा भी
शोभा सम्पन्न थे लक्ष्मण, हों जैसे राम के प्राण दूसरे
राम को नींद न आती उन बिन, बिन उनके भोजन न खाते
राम सवार हुए अश्व पर, जब शिकार को वन जाते
धनुष लिए लक्ष्मण उनकी, रक्षा हित पीछे जाते
इसी तरह शत्रुघ्न भी, लक्ष्मण के जो छोटे भाई
प्राणों से भी प्रिय भरत के, भरत को प्रिय मानते भी
चार भाग्यशाली पुत्रों से, राजा दशरथ अति प्रसन्न थे
वैसे ही जैसे ब्रह्मा जी, हर्षित चार दिक्पालों से
समझदार हुए जब बालक, सर्वगुणों से हुए थे अज्ञ
लज्जाशील, यशस्वी, थे वे, दूरदर्शी भी, व सर्वज्ञ
पुरुष सिंह वे राजकुमार, स्वाध्याय वेदों का करते
धनुर्वेद का अभ्यास भी, पिता की सेवा में रत रहते
रामकथा अमृत धारा है
ReplyDeletelatest postउड़ान
teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "
कालीपद जी, सही कहा है आपने..आभार!
Deleteबहुत सुन्दर मनभावन प्रस्तुति
ReplyDeleteवन्दना जी, स्वागत व आभार!
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