श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
सप्तदशः सर्गः
ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानर यूथ पतियों की
उत्पत्ति
सुंदर, रूपवान जो दोनों, अश्विनीकुमार नाम है जिनका
दो पुत्रों के पिता बने, मैंद, द्विविद नाम था उनका
वरुण पुत्र कहाया सुषेण, वायु थे हनुमान के पिता
गरुड़ समान वेग पाया, वज्र समान सुदृढ़ शरीर था
बुद्धिमान व बलशाली थे, सभी श्रेष्ठ वानरों में वे
कई हजार वानर उपजे थे, वध करने को रावण के
बल की सीमा नहीं थी उनके, इच्छानुसार रूपधारी थे
गजराजों, पर्वतों समान वे, वीर, पराक्रमी, महाबली थे
वानर, रीछ, लंगूर भी जन्मे, थे पराक्रमी देवावस्था से
जिस देव का रूप था जैसा, उसी समान पुत्र था उससे
कुछ की माता रीछ जाति की, कुछ किन्नरियों से जन्मे थे
देव, महर्षि, गरुड़, गन्धर्व ने, पुत्र अनेकों तब जन्मे थे
सर्प, नाग, सिद्ध, विद्याधर, यक्ष आदि भी हुए थे हर्षित
देव स्तुति करने वाले जो, वनवासी भी हुए प्रफ्फुलित
कंदमूल फल खाने वाले, सिंह, व्याघ्र सम थे बलशाली
चट्टानों को उठा हाथ में, इच्छा मात्र से विचरण शाली
अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता, लेते, नख, दांतों से काम अस्त्र का
पर्वत हिला सकें हाथों से, क्षुब्ध कर सकें जल सागर का
लाँघ सकें सागरों को भी, पृथ्वी को विदीर्ण कर डालें
चाहे तो आकाश में जाएँ, गजराजों को बंदी बना लें
घोर शब्द मात्र से उनके, पक्षी गगन से गिर जाते थे
महाकाय वानर बलशाली, कोटि संख्या में यूथपति थे
यूथपति से श्रेष्ठ जो वानर, ऋक्षवान पर्वत पर रहते
दूजे अन्य वनों के वासी, कई पर्वतों पर थे बसते
इंद्रकुमार बाली के भाई, थे सूर्यकुमार सुग्रीव कहाते
वानर यूथपति सब मिलकर, सेवा में उनकी रहते थे
नल-नील, हनुमान व अन्य, वानर अति महाकाय थे
सहायता हेतु श्रीराम की, सारी पृथ्वी पर छा गए थे
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteGod bless u
ReplyDeleteसुन्दर काव्य कथात्मक चित्रण .
ReplyDeleteजय श्रीराम!
ReplyDeletesundar katha .....
ReplyDeleteइतिहास के झरोखे से बढ़िया काव्य प्रसंग .आभार आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDelete