श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
चतुर्थ सर्ग
महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके
उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना
तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान
सुनाना
मंत्री व भाई भी वहीं थे, लवकुश का सम्मान किया
सुंदर रूपवान दोनों ने, मधुर काव्य का गान किया
सँग वीणा की लय के गाते, उच्च स्वर में राग अलापें
स्पष्ट बहुत था उच्चारण भी, सुन श्रोता हर्षित हो जावें
सुखद बहुत है इनका गायन, राम भाइयों को पुनः कहते
मुनि कुमार हैं दोनों तापस, कितनी मधुर रीति से गाते
मार्ग विधान का ले आश्रय, दोनों गाते थे रामायण
मगन हो गए राम सभा में, धीरे-धीरे सुन वह गायन
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बाल्काण्डे
चतुर्थः सर्गः
पञ्चमः सर्गः
राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन
प्रजापति मनु से लेकर, यह सारी पृथ्वी पूर्वकाल में
रहती आयी अधिकार में, राजाओं के जिस वंश में
जिन्होंने सागर को खुदवाया, साठ हजार पुत्र थे जिनके
उसी इक्ष्वाकुवंश की गाथा, महाप्रतापी सगर जिस कुल में
आदि से अंत तक हम दो, इस काव्य का गान करेंगे
दोष दृष्टि त्याग कर सुनिए, इससे चारों पुरुषार्थ सधेंगे
क्रमशः
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