श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
पञ्चमः सर्गः
राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन
बड़े बड़े फाटक थे उसमें, पृथक-पृथक बाजार थे
सभी कलाओं के शिल्पी थे, अस्त्र-शस्त्र व यंत्र थे
स्तुति पाठ सूत करते थे, वंशावली सुनाते मागध
अतुलनीय सुषमा थी उसकी, ऊँचे भवनों पर थे ध्वज
उद्यानों, उपवन से सज्जित, शतघ्नियों
से रक्षित थी
साखू के वन घेर रहे थे, लंबी-चौड़ी अति विशाल थी
चारों ओर खुदी थी खाई, जिसे लांघना था दुर्गम
शत्रु के हित अति दुर्जय थी, उपयोगी पशुओं से पूर्ण
कर दाता नरेश आते थे, व्यापारी भी भिन्न देश के
स्त्रियों की नाटक मंडली, दिखलाती अभिनय नृत्य के
रत्नों से वे महल बने थे, पर्वत सम ऊँचे थे भवन
कूटागारों से परिपूर्ण, अमरावती सी होती शोभन
बड़ी विचित्र थी शोभा उसकी, महलों पर था जल स्वर्णिम
सतमहला प्रासाद थे उसमें, सुंदर नारियों से शोभित
आबादी भी घनी वहाँ की, समतल भूमि पर बसी थी
ईख समान मधुर जल वाली, धान के खेतों से भरी थी
भूमंडल पर सर्वोत्तम थी, मृदंग, वीणा वाद्य गूंजते
दुन्दुभी, पणव बजते थे, मानो सिद्धों के विमान थे
श्रेष्ठ पुरुष निवास करते थे, भीतर से भी घर सुंदर
दशरथ द्वारा थी पालित, महारथी वीरों
से सम्पन्न
जो अनाथ हो, भाग रहा हो, उन पर वार नहीं करते
लक्ष्य वेध करने में सक्षम, कुशल अस्त्र-शस्त्र चालन में
क्रमशः
रोचक शैली, उत्तम प्रसंग और अद्भुत कार्य।
ReplyDeleteजो अनाथ हो, भाग रहा हो, उन पर वार नहीं करते
ReplyDeleteलक्ष्य वेध करने में सक्षम, कुशल अस्त्र-शस्त्र चालन में
मेहनत से रची गई सार्थक सौदेश्य बेहतरीन प्रस्तुति .लयात्मक सांगीतिक अर्थ पूर्ण वर्रण प्रधान .
अयोध्यापुरी का बहुत रोचक वर्णन...आभार
ReplyDeleteमनोज जी, वीरुभाई, व कैलाश जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार!
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