श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
चतुर्थ सर्ग
महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके
उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना
तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान
सुनाना
पाकर कई पुरस्कार वे, मधुर राग से गायन करते
दिया किसी ने कलश, वल्कल वस्त्र भी भेंट दिया
मृगचर्म करे अर्पित कोई, यज्ञोपवीत प्रदान किया
एक कमंडल दे हो हर्षित, मुंज मेखला दी दूजे ने
आसन दिया एक मुनि ने, कौपीन भी दिया चौथे ने
कुठार, गेरुआ वस्त्र भी मिला, जटा बांधने की रस्सी दी
चीर भेंट में मिला उन्हें, समिधा हेतु भी डोरी दी
यज्ञ पात्र दिया हर्ष में, काष्ठभार भी किया समर्पित
गूलर की लकड़ी का पीढ़ा, ढेरों आशीषें की अर्पित
कल्याण हो तुम दोनों का, आयुष भी हो दीर्घ तुम्हारी
इस प्रकार अनेक मुनियों ने, शुभकामनाएँ
दे डाली
आश्चर्य मय काव्य यह अनुपम, कथा सुनाता है राम की
परवर्ती कवियों के हेतु, है आधारशिला काव्य की
मधुर स्वर से गाने वाले, काव्य मधुर पुष्टि देता है
राजकुमारों हो कुशल तुम, कर्ण और मन को मोहता है
एक बार वे गए अयोध्या, गलियों, सड़कों पर गाते थे
भरत के भाई राम ने देखा, सदा प्रशंसा जो पाते थे
घर बुलाया बन्धु जनों को, समुचित आदर-मान दिया
तत्पश्चात गए सभा में, सुवर्ण सिहांसन ग्रहण किया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteब्लॉग पर पधारने और उत्साहवर्धन का धन्यवाद.स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा , ऐसी अपेक्षा है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन, सुन्दर भाव, बधाई.